सबसे प्रेम व करुणा से पेश आयें

अप्रैल 26, 2021

इस रविवार, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने बताया कि ध्यानाभ्यास कैसे हमें एक ऐसी अवस्था में पहुँचा सकता है जिसमें हम दूसरों के साथ अपने व्यवहार में शांत, धैर्यवान, प्रेमपूर्ण, और करुणामयी बन जाते हैं। जब हम अपने जीवन की ओर देखते हैं, महाराज जी ने फ़र्माया, तो हम पाते हैं कि हम अक्सर बिना सोचे-समझे व्यवहार करते हैं, जिसका परिणाम क्रोध होता है। जब हम इसकी जड़ को समझने की कोशिश करते हैं, तो हम पाते हैं कि आधुनिक समय में दूसरों के साथ हमारा मेल-मिलाप और हमारी ज़िम्मेदारियाँ कई गुणा बढ़ गई हैं, जिस कारण हम हमेशा हर काम जल्दी में और हलचल में करते हैं।

हमारी दिनचर्या हमारी समय-सारिणी से बंधी होती है, और इतने दबाव व जल्दबाज़ी के बीच, हम अक्सर ऐसा कुछ कह या कर जाते हैं जिसके लिए बाद में हमें पछताना पड़ता है। इससे बचने का तरीका है, महाराज जी ने फ़र्माया, कि हम दूसरों के साथ अपनी बातचीत और व्यवहार में धैर्यवान व प्रेमपूर्ण बनें। इस अवस्था में आने के लिए, हमें इंसानों के रूप में अपनी आपसी संबंद्धता को और अपने साँझे उद्देश्य को पहचानना होगा।

हम सब यहाँ ख़ुद को जानने के लिए और प्रभु को पाने के लिए आए हैं। हम सब यहाँ एक ऐसा जीवन जीने के लिए आए हैं जिसमें हमारे विचार, शब्द, और कार्य प्रेमपूर्ण और करुणामयी हों, जो दूसरों को सुख और सुकून पहुँचायें। संत राजिन्दर सिंह जी ने समझाया कि इस अवस्था में हम ध्यानाभ्यास के द्वारा पहुँच सकते हैं। जब हम ध्यानाभ्यास के समय अपने ध्यान को अंतर में टिकाते हैं, तो हम शांति और परमानंद से भरपूर रूहानी मंडलों में पहुँच जाते हैं। इन मंडलों में जाकर हम प्रभु के प्रेम का अनुभव करते हैं, जो हमें अंदर से बदल देता है। हम प्रभु के प्रकाश को सभी जीवों में देखने लगते हैं और सबको अपना ही मानकर गले से लगाने लगते हैं। जब हमारी आत्मा अंतर में परमात्मा के साथ जुड़ जाती है, जोकि समस्त शांति के स्रोत हैं, तो हम भी शांत और प्रेमपूर्ण हो जाते हैं। हम अधिक धैर्यवान हो जाते हैं और हरेक परिस्थिति में आराम से प्रतिक्रिया करते हैं। इससे हमारा व्यवहार ठहराव भरा हो जाता है और हमारे जीवन में ख़ुशियाँ भर जाती हैं।