सबसे बड़ा उपहार पायें: त्यौहार का संदेश

दिसम्बर 26, 2021

आज 2021 के अंतिम रविवार को, 86वें ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस में दुनिया भर से कई हज़ार श्रद्धालुओं ने भाग लिया। त्यौहारों का यह मौसम, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने फ़र्माया, देने का, बाँटने का, ख़याल रखने का, और प्रभु का शुक्राना करने का समय है। यह परिवार व मित्रों के साथ समय बिताने का समय है, एक ऐसा समय जब हम अपना दिल दूसरों के लिए खोल देते हैं।

इस समय हमें याद आता है कि देने से ही हम कुछ पाते हैं, क्योंकि जब हम दूसरों को खुशियाँ देते हैं, तो हमारा हृदय विशाल होता है और उसमें पहले से भी ज़्यादा खुशियाँ समा जाती हैं। इस उपहार लेने व देने के मौसम में एक ऐसा उपहार भी है जिसे हमें भूलना नहीं चाहिए। ये वो उपहार है जो हमें प्रभु से मिला है। यह वास्तव में हमें मिला सबसे बड़ा उपहार है – मानव चोले का उपहार, महाराज जी ने फ़र्माया। हमें यह मानव चोला इसीलिए मिला है ताकि हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जान सकें, और आध्यात्मिक यात्रा पर जाकर अपनी आत्मा का मिलाप उसके स्रोत, परमात्मा, में करवा सकें। इस उद्देश्य को हम ध्यानाभ्यास के द्वारा पूरा कर सकते हैं, जिस विधि के द्वारा हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर, उन दिव्य खज़ानों पर एकाग्र कर सकते हैं जो अंतर में हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

जब हमारी आत्मा रूहानी यात्रा पर चल पड़ती है, तो वह प्रभु के प्रेम व प्रकाश के साथ जुड़ जाती है। प्रभु का प्रेम सबसे बड़ा प्रेम है और इस प्रेम के संपर्क में आने से हमारा जीवन बदल जाता है। हम अधिक प्रेमपूर्ण, सच्चे, और करुणामयी हो जाते हैं, और प्रत्येक जीवित प्राणी को अपने ही परिवार का सदस्य मानने लगते हैं। जैसे-जैसे प्रभु का प्रेम हमारे रोम-रोम में समाता जाता है, तो वो हमसे दूसरों तक भी फैलने लगता है। तब हम इस प्रेम को अपने आसपास के लोगों में फैलाने और बाँटने का साधन बन जाते हैं।

त्यौहारों के इस मौसम में हमें केवल बाहरी संसार के उपहारों के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए। हमें खुद को मिले सबसे बड़े उपहार से लाभ उठाने की ओर ध्यान एकाग्र करना चाहिए। जबकि इस महामारी के दौरान हम सब अपने-अपने घरों में रह रहे हैं और सुरक्षित हैं, तो हमें ध्यानाभ्यास में ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताना चाहिए, ताकि हम प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ सकें और उसके परमानंद का अनुभव कर सकें।