ध्यानाभ्यास के द्वारा दिव्य ख़ज़ानों को पायें

52वें ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस के मौके पर वैश्विक श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने खेती का उदाहरण लेते हुए समझाया कि हम कैसे दिव्य ख़ज़ानों की फसल पैदा कर सकते हैं। उन्होंने हमें प्रेरित किया कि हम इस इंसानी जन्म से पूरा-पूरा फ़ायदा उठाते हुए अनंत जीवन के उस अनमोल ख़ज़ाने को पायें जो प्रभु ने हमें बख़्शा है।
यह मानव चोला प्रभु द्वारा हमें दिया गया एक अनमोल उपहार है, महाराज जी ने फ़र्माया। प्रभु ने हमें अविनाशी जीवन का ख़ज़ाना दिया है, जो इतना अधिक कीमती है कि हम सोच भी नहीं सकते हैं। इस जीवन में हमारा लक्ष्य यही है कि हम अपने भीतर गहराई में छुपे इस ख़ज़ाने को पायें। हमें वो सारे पदार्थ और साधन दिए गए हैं जो इस ख़ज़ाने को पाने के लिए हमें चाहियें। स्ंत-महापुरुष इस संसार में आते हैं ताकि इस तलाश में हमारी मदद कर सकें। हमें ध्यानाभ्यास की तकनीक सिखाकर वे हमें वो तरीका सिखा देते हैं जिससे हम इन अंदरूनी ख़ज़ानों को पा सकते हैं।
ध्यानाभ्यास, जिसमें हम अपना ध्यान बाहरी दुनिया से हटाकर अंतर में एकाग्र करते हैं, वो तरीका है जिसके द्वारा हम इन अंदरूनी ख़ज़ानों को पा सकते हैं। इसके द्वारा हम अपने अंतर रूपी ज़मीन की खुदाई करते हैं, ताकि आत्मा रूपी बीज फल-फूल सके। ध्यानाभ्यास में हम आंतरिक रूहानी मंडलों में जाते हैं, जो इस भौतिक मंडल के साथ-साथ ही अस्तित्व में हैं। जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु की दिव्य ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम अपनी आत्मा रूपी बीज को पानी देते हैं, तथा शांति व आनंद का अनुभव करते हैं – जोकि हमारे अंदर मौजूद दिव्यता की फसलें हैं।