प्रेम देने से बढ़ता चला जाता है

जुलाई 19, 2020

आज संत राजिन्दर संह जी महाराज ने 14वें ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस ऑनलाइन कार्यक्रम की अध्यक्षता की, जोकि इस चुनौतीपूर्ण समय में दिलों को जोड़ने और रूहों को उभारने में सफल रहा है। महाराज जी द्वारा हिंदी और फिर अंग्रेज़ी में किए जाने वाले सत्संग का उसी समय आठ भाषाओं में अनुवाद किया जाता है, ताकि दुनिया भर के जिज्ञासु इससे लाभ उठा सकें।

महाराज जी ने समझाया कि हमारी आत्मा अपने स्रोत से युगों-युगों से बिछुड़े होने के कारण हमारी आत्मा प्यासी है और मुरझा गई है। प्रभु की ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ने से हमारी आत्मा पोषित होती है, और वो तरोताज़ा होकर अपने सच्चे घर वापस जाने वाली यात्रा पर चल पड़ती है। इसी वजह से मानव चोले को आत्मा का वसंत कहा गया है। प्रभु-प्रेम की जीवनदायी विशेषता पर और अधिक प्रकाश डालते हुए महाराज जी ने संत दर्शन सिंह जी का एक शेअर फ़र्माया, जो प्रभु से की गई एक प्रार्थना है।

इस शेअर में कहा गया है कि धरती के सीने पर प्रभु-प्रेम के कई घड़े छलका दो, ताकि सभी लोग अपने आसपास और अपने अंदर मौजूद प्रेम के प्रति जागृत हो उठें। इस प्रेम को जब हम अपनी आत्मा के मौन में अनुभव करते हैं, तो हम दुनिया के दर्दों से छुटकारा पा लेते हैं। अपने अंतर में जब हम प्रभु के प्रेम का अनुभव कर लेते हैं, तो हम अपने सभी मिलने वालों के साथ एकता का अनुभव करने लगते हैं, और सबको अपना ही मानकर गले से लगा लेते हैं। प्रेम, महाराज जी ने फ़र्माया, वो इकलौती चीज़ है जो देने से और बढ़ती चली जाती है। जितना अधिक प्रेम हम दूसरों को देते हैं, उतना ही हमारे अंदर प्रेम का सोता बढ़ता चला जाता है।