प्रभु को थामे रखें
यह मानव चोला हमें प्रभु द्वारा दिया गया एक सुनहरा अवसर है, ताकि हम प्रभु के पास वापस पहुँच सकें। लेकिन हमारा दुर्भाग्य यह है कि प्रभु के हमारे भीतर होते हुए भी, हम प्रभु की उपस्थिति से अनजान ही बने रहते हैं। हम बाहरी संसार के आकर्षणों में ही फँसे रहते हैं, जो हमें अपने सच्चे उद्देश्य से दूर रखते हैं। हम चाहे सोचते हों कि हम एक अच्छा और नैतिक जीवन जी रहे हैं, लेकिन हम सबमें कमियाँ होती हैं। जब हम खुद को अकेले ही समझते हुए जीवन की मुश्किलों का सामना करते हैं, तो हमारे अंदर भय समा जाता है।
महाराज जी ने हमें प्रभु के हमारे लिए असीम प्रेम की याद दिलाई। हमें केवल इस प्रेम का अनुभव करना है, और ज़िन्दगी से गुज़रते हुए इसे थामे रखना है। इसके लिए पहला कदम है प्रभु का अनुभव करना, और ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास की तकनीक सीखकर आंतरिक रूहानी मंडलों की यात्रा पर जाते हैं। तब हम अपने सच्चे स्वरूप के प्रति और प्रभु के प्रेम व प्रकाश के प्रति जागृत हो उठते हैं।
इस दिव्य सत्ता के संपर्क में आने से हम प्रेम व आनंद में नहा उठते हैं, तथा एक प्रेमपूर्ण, दयालु, व करुणामयी इंसान बन जाते हैं, जो समस्त सृष्टि के साथ अपनी एकता को पहचानने लगता है। अपने जीवन को सही तरीके से जीने के लिए हमें लगातार अपने लक्ष्य, अर्थात् प्रभु, की ओर केंद्रित रहना होगा। जब हम प्रभु रूपी प्रेम व आनंद के महासागर में तैरना सीख लेते हैं, तो हमारा जीवन खुशी व संतोष से भर उठता है। सारा भय ख़त्म हो जाता है जब हम अपने जीवन में प्रभु की उपस्थिति को लगातार महसूस करने लगते हैं।