प्रभु का अनुभव करने के लिए अहंकार की रुकावट को ख़त्म करें

समय की शुरुआत से ही इंसान की तलाश करता रहा है। यह तलाश अक्सर तब शुरू होती है जब हम जीवन में किसी मुसीबत या कठिनाई से गुज़रते हैं। तब हमें लगने लगता है कि इस क्षणभंगुर बाहरी संसार में हमें सदा-सदा की ख़ुशियाँ कभी भी नहीं मिल सकती हैं। तब हमारे अंदर अपने जीवन के अर्थ को लेकर सवाल उठने लगते हैं, और यहीं से प्रभु की हमारी तलाश की शुरुआत होती है।
प्रभु का अनुभव के मार्ग में हमारे सामने जो रुकावट है, वो है अहंकार की। यह हमारे सच्चे स्वरूप, अर्थात् हमारी आत्मा, और परमात्मा के बीच एक दीवार है। अहंकार हमारा वो हिस्सा है जो हमें बताता है कि हम सबसे अलग और सबसे बेहतर हैं। यह हमारे जीवन में हलचल और तनाव ले आता है, और हमें उस स्थिर अवस्था में पहुँचने नहीं देता जो प्रभु का अनुभव करने के लिए हमें चाहिए। हम अपने अहंकार पर काबू कैसे पा सकते हैं, जो ऊपरी तौर पर एक असंभव कार्य लगता है? इसके लिए हमें एक पूर्ण सत्गुरु की मदद व मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।
संत-महापुरुष इस संसार में आते हैं ताकि हमें प्रभु के पास वापस जाने का मार्ग दिखा सकें। वे हमें अपने सच्चे स्वरूप की याद दिलाते हैं, तथा हमें सद्गुणों को धारण करने की शिक्षा देते हैं, ताकि हम अपनी आध्यात्मिक तरक्की के लिए मज़बूत नींव बना सकें। वे हमें ध्यानाभ्यास की तकनीक सिखाते हैं, ताकि हम प्रभु के प्रकाश व प्रेम का अनुभव कर सकें। प्रभु के प्रकाश के साथ जुड़ने से धीरे-धीरे हमारा अहंकार ख़त्म हो जाता है।
धीरे-धीरे हम प्रभु के प्रकाश को अन्य लोगों के भीतर भी देखने लगते हैं, और प्रभु की बनाई समस्त सृष्टि के साथ एकता महसूस करने लगते हैं। ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु के प्रकाश व प्रेम में नहाकर, हम द्वैत की जगह एकता का जीवन जीने लगते हैं, तथा प्रभु की ओर बढ़ते चले जाते हैं।