अपने सच्चे स्वरूप को जानें

जुलाई 18, 2020

आज के अपने सत्संग में, जिसे दुनिया भर में सीधे प्रसारित किया गया, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने इंसानी अवस्था पर प्रकाश डाला और समझाया कि हम उस उद्देश्य को कैसे पूरा कर सकते हैं जिसके लिए हमें यह मानव चोला दिया गया है।

बाहरी इंद्रियों के घाट पर जीने के कारण हम बाहरी संसार में मिलने वाले सीमित ज्ञान पर निर्भर रहकर ही जीवन गुज़ार देते हैं। हम सोचते हैं कि इस भौतिक संसार के अलावा कुछ और है ही नहीं, और इसीलिए हम इसकी सीमाओं में बँधे रहकर ही कार्य करना और जीवन बिताना सीख लेते हैं, तथा केवल उन्हीं चीज़ों पर ध्यान टिकाए रहते हैं जिन्हें हम अपनी इंद्रियों के द्वारा अनुभव कर पाते हैं। हम स्थाई ख़ुशियाँ पाने की अपनी तलाश को भी इस क्षणभंगुर भौतिक संसार तक ही सीमित रखते हैं, और यह नहीं जानते कि जिनकी हमें तलाश है वो सभी ख़ज़ाने हमारे भीतर ही दबे पड़े हैं, महाराज जी ने फ़र्माया।

हम असल में यह शरीर नहीं हैं, बल्कि इस शरीर को चलाने वाली ताकत हैं। हम आत्मा हैं, परमात्मा का अंश हैं। हमारी आत्मा प्रभु से बिछुड़ चुकी है, और यह मानव चोला एक सुनहरा अवसर है जिसमें हम प्रभु के पास वापस पहुँच सकते हैं। ऐसा करने के लिए हमें ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक रूहानी यात्रा पर जाना होगा, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। जब हमारी आत्मा इस आंतरिक यात्रा पर चल पड़ती है, तो वो अपने सच्चे स्वरूप को जान जाती है, तथा अंदरूनी मंडलों के प्रेम, प्रकाश, और आनंद का अनुभव करने लगती है। आत्म-अनुभव और प्रभु-प्राप्ति – जो हमारे जीवन का उच्चतम उद्देश्य है – की इस यात्रा में, आत्मा को हर कदम पर प्रेम व सुंदरता का अनुभव होता है।