ध्यानाभ्यास: जल्दी हार न मानें

आज, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने 57वें ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस ऑनलाइन कार्यक्रम की अध्यक्षता की। हम सब यहाँ इसीलिए आए हैं ताकि हम आत्मिक तरक्की कर सकें, महाराज जी ने विश्व भर के श्रोतागणों को सम्बोधित करते हुए फ़र्माया। आत्मिक तरक्की करने के लिए हमें शांत अवस्था में पहुँचना होगा। इस प्रक्रिया के द्वारा, जिसे ध्यानाभ्यास कहते हैं, हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अपने अंतर में एकाग्र करते हैं, जिससे हम आंतरिक रूहानी मंडलों में जाकर प्रभु के प्रेम व प्रकाश के साथ जुड़ पाते हैं।
शांत अवस्था में बैठने की यह प्रक्रिया देखने में आसान लग सकती है, लेकिन जब हम स्वयं ध्यान टिकाने के लिए बैठते हैं, तो हम पाते हैं कि कई चीज़ें हमारा ध्यान भटकाने लगती हैं। हमारे मन में लगातार अपनी ज़िम्मेदारियों, कार्यों, और अन्य बातों संबंधी विचार आने लग जाते हैं, और अंतत: हम ध्यान टिकाने की अपनी क्षमता पर ही प्रश्न उठाने लगते हैं।
हम में से कई लोग अपने शरीर को या मन को शांत नहीं कर पाते हैं। कई लोग एक या दिन कोशिश करने के बाद हार मान लेते हैं क्योंकि हम ज़्यादा देर तक स्थिर नहीं रह पाते हैं। लेकिन जब हम भौतिक संसार की गतिविधियाँ करते हुए खुद को देखें, तो हम पाते हैं कि कोई पेन्टिंग या चित्र देखते समय, कोई मधुर गीत सुनते समय, या कोई सुंदर कविता पढ़ते समय, हम घंटों स्थिर रह लेते हैं। ऐसा क्यों? कलाएँ हमारी इंद्रियों को, हमारी देखने और सुनने की इंद्रियों को, आकर्षित करती हैं। भौतिक इंद्रियों का यह अनुभव हमें ख़ुशी प्रदान करता है। जब हम ध्यान टिकाने के लिए बैठते हैं, तो हम आंतरिक मंडलों के दृश्यों व आवाज़ों का आनंद उठाना चाहते हैं। ये आंतरिक दृश्य और आवाज़ें उन चीज़ों से कहीं ज़्यादा मनमोहक हैं जो हम इस भौतिक संसार में अनुभव करते हैं। हम अपनी भौतिक इंद्रियों के द्वारा जिस सुंदरता का अनुभव करते हैं, वो उस सुंदरता का प्रतिबिंब भर है जो आंतरिक मंडलों में हमारी प्रतीक्षा कर रही है।
हमें जो चाहिए, महाराज जी ने समझाया, वो है धैर्य और निरंतरता। हमें अपने ध्यान को अंतर में एकाग्र करना है और किसी भी चीज़ से अपने ध्यान को भटकने नहीं देना है। समय और प्रयास के साथ, हम अपने शरीर व मन को शांत कर पायेंगे और आंतरिक संसार हमारे लिए खुल जाएगा। हम प्रभु के प्रेम व प्रकाश के साथ जुड़ने की अवर्णनीय ख़ुशी का अनुभव कर पायेंगे। हम में से हरेक अपने अंतर में एकाग्र होकर इस अंदरूनी यात्रा पर जा सकता है। सवाल केवल यही है कि हम कितने एकाग्र हैं, तथा अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हम कितनी कोशिश और ध्यान दे रहे हैं।