ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु-प्रेम के रंगों का अनुभव करें

रंगों के त्यौहार, होली, की पूर्व-संध्या पर, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने विशाल ऑनलाइन श्रोता-समूह को होली की शुभकामनाएँ दीं। होली का त्यौहार पूर्वी देशों में वसंत के आगमन पर मनाया जाता है। आज महाराज जी ने इस त्यौहार के आध्यात्मिक महत्त्व पर प्रकाश डाला।
सच्ची होली, महाराज जी ने फ़र्माया, तभी होती है जब हमारी आत्मा का मिलाप परमात्मा में हो जाता है और हमारा पूरा अस्तित्व प्रभु के प्रेम से भर जाता है। हमारी आत्मा को अपने स्रोत से बिछुड़े हुए लाखों-करोड़ों साल हो गए हैं, और इस दौरान वो सृष्टि में चक्कर काटती रही है, तथा अपने सच्चे घर वापस जाने के लिए तड़पती रही है। अब जबकि हमें मानव जन्म मिल गया है, तो यह हमारे लिए प्रभु में एकमेक होने का एक सुनहरा अवसर है।
हो सकता है कि हमें यह मानव जीवन बहुत लंबा लगता हो, लेकिन असल में यह बहुत छोटा है। आत्मा की लंबी यात्रा में यह एक छोटा सा लम्हा भर है। इसीलिए, हमें इस अवसर से पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहिए। ऐसा हम कर सकते हैं ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु-प्रेम के दिव्य रंगों में पूरी तरह से डूबकर। एक बार प्रभु-प्रेम का अनुभव कर लेने के बाद, हमें यह प्रेम दूसरों पर भी खुले दिल से लुटाना चाहिए, ताकि हम अपने आसपास के लोगों के जीवन में भी प्रेम और ख़ुशियाँ ला सकें। यह प्रेम ही है, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया, जो हमें प्रभु के पास वापस ले जाता है।