जियो और जीने दो: पृथ्वी दिवस के लिए सत्संग

अप्रैल 17, 2021

हर साल 22 अप्रैल को मनाए जाने वाले Earth Day, अर्थात् पृथ्वी दिवस, से कुछ दिन पहले, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया कि पृथ्वी के संसाधनों का संरक्षक होने के नाते, यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने ग्रह के पर्यावरण को सुरक्षित रखें। प्रभु ने हमें वो सबकुछ दिया है जो जीवित रहने के लिए हमें चाहिए। हमें साँस लेने के लिए हवा दी गई है, प्यास बुझाने के लिए पानी दिया गया है, अपने शरीर का पोषण करने के लिए फल, सब्ज़ियाँ, और अनाज दिए गए हैं, तथा गर्मायश के लिए सूर्य की किरणें दी गई हैं। लेकिन इन सब देनों के बावजूद, इंसानों ने पृथ्वी को जितना दिया है, उससे कहीं ज़्यादा लिया है। यहाँ तक कि हम पृथ्वी के संसाधनों को ख़त्म करते जा रहे हैं।

पिछली सदी में, विकास के नाम पर इंसानों ने पृथ्वी के संसाधनों का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल किया है। हमने कंक्रीट की इमारतें और सड़कें बनाने के लिए पेड़ों को काट डाला है; हमने अपने भोजन के लिए पशुओं, पक्षियों, और मछलियों को मार डाला है; हमने धरती के पर्यावरण और जलीय स्रोतों को प्रदूषित कर दिया है, और उन करोड़ों जीवों के जीवन को ख़तरे में डाल दिया है जिनके साथ हम धरती को साँझा करते हैं।

हमें जियो और जीने दो का सिद्धांत सीखना होगा। पृथ्वी दिवस पर हमें थमना चाहिए और सोचना चाहिए कि हम पृथ्वी के साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं, और हम उन देनों का इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं जो हमें मिली हुई हैं। हमें केवल उतना ही इस्तेमाल करना चाहिए जितने की हमें ज़रूरत है और अपनी बाकी देनों को दूसरों के साथ बाँटना चाहिए, सेवा के भाव के साथ, ताकि दूसरों का बोझ कुछ कम हो सके। हमें सभी जीवों की आंतरिक एकता को देखना और पहचानना होगा, तथा समझना होगा कि कैसे एक प्रजाति का विनाश पूरी धरती के पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ सकता है, जिसके बहुत दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

हमें अपना जीवन इस तरीके से जीना चाहिए कि हम प्रभु की बनाई इस सृष्टि के असली मकसद को समझ सकें; हम जान सकें कि हम असल में कौन हैं, और प्रभु के साथ, धरती के साथ, तथा अपने साथी इंसानों के साथ हमारा क्या रिश्ता-नाता है। इन सवालों का जवाब पाने के लिए हम ध्यानाभ्यास करते हैं। जब हम प्रभु के प्रेम व प्रकाश के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम सबके साथ अपनी अंदरूनी संबद्धता को पहचान जाते हैं, और प्रभु की बनाई सम्पूर्ण सृष्टि के साथ एकता व सौहार्द में जीने लगते हैं।