प्रेम का स्थान

दिसम्बर 18, 2021

इंसान होने के नाते, जीवित रहने के लिए हमारी कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ होती हैं। इनमें शामिल है शरीर को पोषित करने के लिए भोजन, शरीर को ढकने के लिए कपड़े, सिर के ऊपर एक छत, और खुद को नुकसान से बचाने के लिए सुरक्षा। लेकिन इन सभी ज़रूरतों में सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है प्रेम की आवश्यकता। हर व्यक्ति प्रेम करना और प्रेम पाना चाहता है। जीवन की अलग-अलग अवस्थाओं में, पैदा होने से लेकर बड़े होने तक हम माता-पिता, भाई-बहन, दोस्तों, पति-पत्नी, संतान, सहकर्मियों तथा कई अन्य लोगों से प्यार पाना चाहते हैं। हम पूरा जीवन बाहरी संसार में प्रेम ढूंढते रहते हैं। लेकिन किसी न किसी मोड़ पर, हमें एहसास होता है कि इस दुनिया के सभी प्रेम अस्थाई हैं। वे समय या स्थान की दूरी के कारण, या मृत्यु के कारण, हमसे दूर हो जाते हैं। प्रेम के मिट जाने या दूर हो जाने से हमें दर्द और तकलीफ़ सहनी पड़ती है, और हम सोचने लगते हैं: तो क्या कोई ऐसा भी प्रेम है जो अविनाशी है?

संत-महापुरुष कहते हैं, हाँ। ये वो प्रेम है जो हम तब अनुभव करते हैं जब हम प्रभु के साथ जुड़ जाते हैं। प्रभु का प्रेम शांतिपूर्ण है और हमें स्थाई खुशी व आनंद से भरपूर कर देता है। जब हम दिव्य प्रेम का अनुभव करते हैं, तो हम प्रभु के साथ अपनी नज़दीकी का अनुभव करते हैं और अपने जीवन में प्रभु की उपस्थिति का अनुभव करने लगते हैं। हम प्रेम के नगर में प्रवेश कर जाते हैं जहाँ शांति और करुणा का साम्राज्य है; वह स्थान प्रकाश, सुंदरता, और प्रेम से भरपूर है, जो हमें पूरी तरह से बदल देता है। यही वो स्वर्ग है जिसे हम सब इस संसार में तलाशते रहते हैं। लेकिन हम इस स्वर्ग को कहाँ पा सकते हैं?

यह स्वर्ग हमारे भीतर ही मौजूद है, महाराज जी ने फ़र्माया, क्योंकि प्रभु हमारे भीतर ही हैं। प्रभु को अनुभव करने का तरीका है अपने ध्यान को बाहरी दुनिया से हटाकर आंतरिक रूहानी मंडलों में एकाग्र करना। ध्यानाभ्यास के द्वारा हम सब प्रेम के उस स्थान तक पहुँच सकते हैं जिसे हम ढूंढ रहे हैं।