ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु-प्रेम की मिठास का अनुभव करें

जून 27, 2020

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने मानवता द्वारा अनंत काल से की जा रही स्थाई ख़ुशियों की तलाश के बारे में समझाया। इस भौतिक संसार में जीते हुए, हम ख़ुद को शरीर और मन ही समझने लगे हैं, और भूल चुके हैं कि हमारा असल में आत्मा हैं, जोकि परमात्मा का वो अंश है जो इस शरीर को जान दे रहा है। साथ ही, क्योंकि हम केवल इस बाहरी संसार के बारे में ही जानते हैं, इसीलिए हम स्थाई ख़ुशियों की अपनी तलाश को भी इस अस्थाई संसार तक ही सीमित रखते हैं, और यह नहीं जानते कि जिन ख़ज़ानों की तलाश हम कर रहे हैं, वो हमारे अंतर में हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

जब तक हम ख़ुद को शरीर ही समझते रहते हैं और बाहरी संसार में ख़ुशी तलाशते रहते हैं, और जब तक हम अपने इंसानी अस्तित्व की सीमाओं तक ही रह जाते हैं, तब तक सच्ची ख़ुशी हमसे दूर ही रहती है, महाराज जी ने फ़र्माया। सच्ची ख़ुशी पाने के लिए हमें आंतरिक रूहानी मंडलों की यात्रा पर जाना होगा। ध्यानाभ्यास के द्वारा जब शरीर और मन के स्थिर हो जाते हैं, तो आत्मा पवित्र आंतरिक यात्रा पर चल पड़ती है, और अंतर में प्रभु के प्रेम का अनुभव करती है। प्रभु के प्रेम से मीठा और कुछ भी नहीं है, महाराज जी ने फ़र्माया। जब हमारी आत्मा प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ जाती है, तो वो पोषित होती है, और प्रभु के प्रेम, प्रकाश, और ख़ुशियों का अनुभव करने लगती है। अपने आप को प्रभु के अंश के रूप में पहचान कर वो वापस अपने स्रोत में लीन होने की यात्रा पर चल पड़़ती है, तथा सदा-सदा रहने वाली ख़ुशियों और आनंद को पा लेती है।