आध्यात्मिक अकाउन्टिंग: जीवन के क्रेडिट और डेबिट का लेखाजोखा

यूनाइटेड स्टेट्स में, ऐतिहासिक रूप से, 15 अप्रैल को टैक्स डे (कर दिवस) मनाया जाता है – इस दिन फेडरल (संघीय) सरकार को व्यक्तिगत इन्कम टैक्स (आय कर) जमा किए जाते हैं। आज के अपने सत्संग में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने यह उदाहरण लेकर अपने जीवन का लेखाजोखा करने के महत्त्व के बारे में समझाया। वित्तीय अकाउन्टिंग (लेखांकन) में, महाराज जी ने फ़र्माया, हम अपने डेबिट (व्यय) को कम और अपने क्रेडिट (आय) को बढ़ाने की कोशिश करते हैं, ताकि हमें ज़्यादा से ज़्यादा लाभ हो सके।
लेकिन एक अन्य तरह की अकाउन्टिंग भी है जो हमारे जीवन पर प्रभाव डालती है, महाराज जी ने समझाया, और यह अकाउन्टिंग है कि हम अपना जीवन कैसे बिताते हैं। यह अकाउन्टिंग है अपने हरेक विचार, शब्द, और कार्य को पहचानना और उनका लेखाजोखा रखना। अगर हमारे विचार अच्छे, प्रेमपूर्ण, और दयालु होंगे, और अगर हमारे कार्य सहायतापूर्ण और अच्छे होंगे, तो वो हमारी बैलेन्स शीट में क्रेडिट के कॉलम में जायेंगे।
दूसरी ओर, अगर हमारे विचार, वचन, और कार्य नकारात्मक, हिंसात्मक, और चोट पहुँचाने वाले होंगे, तो वो हमारी बैलेन्स शीट में डेबिट के कॉलम में जायेंगे। हमारे क्रेडिट और डेबिट का यह लेखाजोखा हमारे जीवन के हर दिन, हर मिनट, हर क्षण होता रहता है, महाराज जी ने समझाया, और हम इस सबके लिए जवाबदेह होते हैं। जब जवाबदेही का यह एहसास हमें होता है, तब हम समझ जाते हैं कि हमें बेहतर करना चाहिए। हम अपने जीवन में सुधार लाने के लिए कदम उठाने लगते हैं। वित्तीय अकाउन्टिंग की तरह ही, यह ज़रूरी है कि हम अपने विचारों, शब्दों, और कार्यों का नियमित रूप से लेखाजोखा रखें। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपना जीवन बेहतरीन ढंग से जियें, जिससे कि हमारा अपना और हमारे आसपास के लोगों का जीवन समृद्ध हो सके।
व्यापार के क्षेत्र में, एक अच्छा अकाउन्टेंट हमें सही तरीके से बहीखाते रखने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है। आध्यात्मिक क्षेत्र में, यह मार्गदर्शन हमें संतों और सत्गुरुओं से मिलता है। वे इस मानव जीवन के उतार-चढ़ाव से, सृष्टि के नियमों से, और सृष्टिकतों के साथ हमारे रिश्ते से, पूरी तरह परिचित होते हैं। वे मानवता का मार्गदर्शन करने के लिए आते हैं, ताकि हम वैसा जीवन जी सकें जैसा प्रभु चाहते हैं कि हम जियें। हमें ध्यानाभ्यास की तकनीक सिखाकर, वे हमें प्रभु की आंतरिक ज्योति व श्रुति के साथ जोड़ देते हैं, ताकि हम प्रभु के साथ और एक-दूसरे के साथ अपनी संबद्धता का अनुभव कर सकें। जब हम स्वयं प्रभु के प्रेम का अनुभव कर लेते हैं, तो हम दिव्य प्रेम से भरपूर हो जाते हैं, और ख़ुशियाँ हमारे पूरे अस्तित्व में समा जाती हैं। प्रभु-प्रेम की ख़ुश्बू हमसे होकर हमारे आसपास के लोगों तक भी फैलने लगती है। जब हम सबको अपना ही मानकर गले से लगा लेते हैं, हमारे विचार, शब्द, और कार्य अधिक प्रेमपूर्ण व शांत हो जाते हैं।