ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेसः “प्रेम के आलिंगन में”

अप्रैल 19, 2020

इस शाम, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने दिल्ली, भारत, से चौथे “ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस” (विश्व में अपने-अपने स्थान पर ध्यानाभ्यास करें) ऑनलाइन कार्यक्रम की अध्यक्षता की। 72 देशों के लोग महाराज जी के साथ इस लाइव ध्यानाभ्यास कार्यक्रम से जुड़े, जिससे पूर्व महाराज जी ने एक यादगार सत्संग फ़र्माया, पहले हिंदी में और फिर अंग्रेज़ी में।

सत्संग की शुरुआत करते हुए संत राजिन्दर सिंह जी ने वर्तमान वैश्विक संकट का उल्लेख किया और फ़र्माया कि यह वायरस इंसानों द्वारा बनाई गई सीमाओं में बँधा हुआ नहीं है। यह अति-सूक्ष्म कीटाणु लोगों की उम्र, राष्ट्रीयता, संस्कृति, या शैक्षिक स्तर के आधार पर भेदभाव नहीं करता है। हालाँकि इस वायरस का संक्रामक स्वभाव चिंता का विषय हो सकता है, लेकिन इससे बढ़कर भी कुछ है जो हमें सभी सीमाओं से ऊपर ले जाता है, और वो है प्रेम। प्रेम भी संक्रामक होता है। प्रेम का गुण कोई सीमाएँ नहीं जानता, उन्होंने फ़र्माया। । प्रेम खुली उड़ान भरता है, और इस दुनिया में केवल प्रेम ही ऐसी चीज़ है जो देने से और बढ़ती चली जाती है।

“इश्क़ की कोई नहीं है इंतहा

इश्क़ का आगाज़ ही आगाज़ है”

– संत दर्शन सिंह जी महाराज

 

संत दर्शन सिंह जी महाराज के इस शेअर की व्याख्या करते हुए महाराज जी ने समझाया कि प्रेम की केवल शुरुआत ही होती है, प्रेम का कोई अंत नहीं होता। प्रेम प्रभु से उत्पन्न होता है, क्योंकि प्रभु ख़ुद साक्षात् प्रेम ही हैं, और इस प्रेम का हम अनुभव कर सकते हैं जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने अंतर में जाते हैं। जब हम प्रभु की दिव्य ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ जाते हैं, तो हमारे अंदर बिना-शर्त प्रेम पैदा हो जाता है और हमारे अंदर एक बहुत बड़ा परिवर्तन आ जाता है। जैसे-जैसे प्रभु के लिए हमारा प्रेम मज़बूत होता जाता है, वैसे-वैसे प्रभु की संतानों के लिए भी हमारा प्रेम बढ़ता जाता है, उन्होंने फ़र्माया। इसी प्रेम के कारण हम एक-दूसरे की सेवा करने के लिए और अपने साथी इंसानों की पीड़ा को दूर करने के लिए प्रेरित होते हैं, क्योंकि प्रेम और करुणा साथ-साथ चलते हैं।

आइए, इस वैश्विक संकटकाल में हम अपना विश्लेषण करें, महाराज जी ने समझाया। आइए हम इस समय ज़रा रुकें और सोचें, कि हम अपना जीवन कैसे बिता रहे हैं, और हमें कैसा जीवन बिताना चाहिए। आइए हम ख़ुद को याद दिलायें कि हम हमेशा प्रभु के आलिंगन में हैं। इस समय में, जबकि वायरस फैलने को लेकर पूरे विश्व में बहुत चिंता है, आइए हम प्रेम को फैलाने का संकल्प लें। प्रेम संक्रामक है; इसके कैरियर (वाहक) बनें, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। इसके बाद महाराज जी ने दुनिया भर के ऑनलाइन श्रोताओं को ध्यान में बैठा दिया।