ध्यानाभ्यास के द्वारा आत्मा का पोषण

इस रविवार, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने सत्संग में आने के महत्त्व के बारे में समझाया, जहाँ आकर हमें जीवन के रहस्य संबंधी प्रश्नों के जवाब मिल जाते हैं। जब हम एक पूर्ण सत्गुरु के सत्संग में आते हैं, तो हम आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने की विधि सीखते हैं, जिससे हमारी आत्मा प्रभु के साथ जुड़ जाती है। इस प्रेम का अनुभव करने से हम जान जाते हैं कि प्रभु हमारे भीतर ही हैं। हम ख़ुद को आत्मा के रूप में अनुभव कर पाते हैं और प्रभु के प्रेम से भरपूर हो जाते हैं।
इस संसार के मायाजाल में फँसकर हमारा मन इस दुनिया को ही सच समझता रहता है, और हमें यहाँ के आकर्षणों और गतिविधियों में ही व्यस्त रखता है, जो हमें बेहद ज़रूरी लगती हैं। संत-महापुरुष हमें इस जीवन के उच्चतम उद्देश्य के बारे में बताते हैं – ख़ुद को आत्मा के रूप में अनुभव करना और प्रभु को पाना।
यह समझ में आ जाने से हम केवल वही गतिविधियाँ करने लगते हैं जो हमें प्रभु के करीब ले जाती हैं और उन गतिविधियों को छोड़ देते हैं जो हमें प्रभु से दूर ले जाती हैं। हम अपने ध्यान को अंतर्मुख करने का अभ्यास करने लगते हैं और अंतर में एकाग्र होते हैं, ताकि हम बाहरी क्षणिक ख़ुशियों की तलाश में भटकने के बजाय आंतरिक रूहानी मंडलों के सदा-सदा रहने वाले आनंद का अनुभव कर सकें। धीरे-धीरे हमारे जीवन में परिवर्तन आ जाता है और हम संपूर्ण सृष्टि के अंदर प्रभु का प्रकाश देखने लगते हैं।
ध्यानाभ्यास के द्वारा जब हमारी आत्मा प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ जाती है, तो वो पोषित होती है। तब, अपनी मुरझाई अवस्था से बाहर निकलकर, वो प्रभु के पास वापस जाने वाली यात्रा पर चल पड़ती है, ताकि वो उस उद्देश्य को पूरा कर सके जिसके लिए उसे यह मानव चोला दिया गया है।