प्रभु को अपने भीतर पायें

आज के अपने वेब प्रसारण में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने मानव जन्म के सच्चे उद्देश्य के बारे में बताया।
हम सबके जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब हम सोचने लगते हैं कि हम यहाँ क्यों आए हैं। हम में से कई लोग सोचते हैं कि हम यहाँ अपने शरीर की देखरेख करने के लिए, या सांसारिक दौलत इकट्ठा करने के लिए, या अपनी बुद्धि का विकास करने के लिए आए हैं। अपनी-अपनी समझ के अनुसार जैसा हम अपने जीवन का उद्देश्य समझते हैं, उसी तरीके से हम अपना जीवन जीने लगते हैं और उसी दिशा में ध्यान लगाते हैं। बहुत ही कम लोग, महाराज जी ने फ़र्माया, इस बात को समझ पाते हैं कि यह जीवन प्रभु ने हमें इसीलिए दिया है ताकि हम अपने असली अस्तित्व को जान सकें और प्रभु को अनुभव कर सकें।
संत दर्शन सिंह जी महाराज के एक शेअर की व्याख्या करते हुए महाराज जी ने समझाया कि प्रभु को पाने के लिए हमें कहीं बाहर जाने की ज़रूरत नहीं है। प्रभु ने हमारी आत्मा को मानव चोला दिया है और उसे वो सारे पदार्थ भी दिए हैं जो प्रभु को पाने के लिए उसे चाहियें। प्रभु और प्रभु को पाने का रास्ता, दोनों इसी शरीर के अंदर हैं।
प्रभु का पाना कोई मुश्किल काम नहीं है; हमें केवल अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक मंडलों में केंद्रित करना है और प्रभु से जुड़ना है, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। अपने ध्यान को अंतर्मुख करने के इस तरीके को ही ध्यानाभ्यास कहते हैं। जैसे-जैसे हमारी एकाग्रता बढ़ती जाती है, हम प्रभु के पास वापस जाने वाली यात्रा पर तेज़ी से कदम बढ़ाने लगते हैं।