ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु की संगति का अनुभव करें

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज की अध्यक्षता में 26वें ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस ऑनलाइन कार्यक्रम में विश्व भर से कई हज़ार जिज्ञासुओं ने भाग लिया।
अपने सत्संग में महाराज जी ने फ़र्माया कि सामाजिक दूरी के इस समय में हम में से कई लोगों ने अकेलेपन का अनुभव किया है। लेकिन हम इस दुनिया में कभी भी अकेले नहीं होते हैं, महाराज जी ने आश्वासन दिया। प्रभु हर वक़्त हमारे साथ रहते हैं, तथा हमेशा हमारी रक्षा करते रहते हैं और हमें सहारा देते रहते हैं, चाहे हम उसे पहचानें या नहीं। लेकिन, क्योंकि इंसान होने के नाते हम शारीरिक इंद्रियों के स्तर पर ही कार्य करते रहते हैं, इसीलिए हमारे लिए इस सच्चाई को स्वीकार करना मुश्किल होता है, क्योंकि हम प्रभु को देख, सुन, या महसूस नहीं कर पाते हैं।
तो हम प्रभु का अनुभव कैसे कर सकते हैं? संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया कि प्रभु परम-आत्मा हैं। प्रभु चेतन हैं और माया या भौतिकता की मिलावट से परे हैं। प्रभु का अनुभव करने के लिए, हमें भी शारीरिक चेतनता से और इस भौतिक मंडल से ऊपर उठना होगा, तथा आत्मिक चेतनता की अवस्था में पहुँचना होगा। ऐसा केवल ध्यानाभ्यास की प्रक्रिया के द्वारा ही हो सकता है।
जब हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अपने शिवनेत्र या अंदरूनी आँख पर केंद्रित करते हैं, जोकि अंदरूनी मंडलों में जाने का प्रवेशद्वार है, तो हमारी आत्मा उड़ान भरती है और आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा पर जाती है, तथा दिव्य ज्योति व श्रुति की धारा के साथ जुड़ जाती है। जब हम प्रभु के सच्चे साथ का अनुभव करने लगते हैं, तो फिर हम इस दुनिया में अकेलापन महसूस नहीं करते हैं। प्रभु के साथ होने से हमारा सारा अकेलापन ख़त्म हो जाता है, और हम आशा व सकारात्मकता की ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं जो हमें सभी चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत देती है।