प्रभु को चुनो

आज के अपने ऑनलाइन सत्संग में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया कि कैसे हमें प्रभु को चुनना चाहिए और अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए दृढ़-निश्चयी बने रहना चाहिए। संत-महापुरुष इस संसार में आते हैं ताकि हमें याद दिला सकें कि हमें प्रभु के पास वापस जाने के लिए क्या करने की आवश्यकता है।
लेकिन इंसान की दशा कुछ ऐसी है कि यह पता होने के बाद भी कि हमें क्या करना है और हमारे लिए क्या अच्छा है, हम अपनी अंतहीन इच्छाओं के सामने कमज़ोर पड़ जाते हैं और ऐसे चुनाव व निर्णय कर लेते हैं जो हमारे लिए अच्छे नहीं होते हैं, या जो हमें हमारे सच्चे लक्ष्य से दूर ले जाते हैं। हमारी आत्मा, जोकि परमात्मा से बिछुड़ी हुई है, अंधकार में है, और प्रभु से यह दूरी ही हमारे दुखों का मूल कारण है।
आत्मा के ऊपर चढ़े काले बादल बाहरी दुनिया के दीयों या फ़ानूसों की रोशनी से, या बाहरी संसार की चमक-दमक से, हटाए नहीं जा सकते, महाराज जी ने फ़र्माया। जब हम अपने ध्यान को अंतर्मुख एकाग्र करते हैं और प्रभु की ओर टिकाते हैं, तो हम प्रभु की ज्योति का अनुभव कर पाते हैं, जो हमारी आत्मा को रोशन कर देती है। इस प्रकाश के साथ जुड़ने से हमारी आत्मा पोषित होती है; वो अपने सच्चे स्वरूप को जान जाती है और प्रभु के पास वापस जाने वाली यात्रा पर चल पड़ती है। ध्यानाभ्यास के द्वारा हम प्रभु के प्रेम और प्रकाश के साथ जुड़ सकते हैं। अगर हम अपना जीवन एक के बाद एक इच्छाएँ पूरी करने में ही गुज़ार देंगे, तो हम प्रभु को पाने के लिए मिला यह सुनहरा अवसर बेकार में ही गँवा देंगे, महाराज जी ने समझाया।
हमारे लिए बेहतर यही होगा कि हम क्षणिक सांसारिक आकर्षणों और ख़ुशियों के मोहजाल में न फँसकर, ज़्यादा से ज़्यादा समय ध्यानाभ्यास में दें। जितना जल्दी हम प्रभु की ओर वापस जाने की अपनी यात्रा की शुरुआत करेंगे, उतना ही अधिक समय हमारे पास अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए होगा।