ध्यानाभ्यास के द्वारा जीवन का खेल जीतें

मार्च 27, 2021

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के ऑनलाइन सत्संग की विषयवस्तु यह थी कि हम जीवन का खेल कैसे जीत सकते हैं। बाहरी दुनिया के खेलों और प्रतियोगिताओं के विपरीत, जीवन का खेल बाहरी मौसमों पर निर्भर नहीं है, बल्कि ऐसा है जिसे हम अपने जीवन के हर पल में खेल रहे हैं।

यह खेल चल रहा है हमारी आत्मा और मन के बीच। इस खेल में हमारी आत्मा अपने लक्ष्य तक पहुँचना चाह रही है और मन का उद्देश्य है कि वो आत्मा को उसके लक्ष्य तक पहुँचने न दे। मन ऐसा करता है विचारों के द्वारा – अतीत के विचार और भविष्य की चिंताएँ – ये सब आत्मा को भटकाने का साधन हैं। जब भी हम आत्मा के लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाने लगते हैं, तो मन इन साधनों का प्रयोग कर हमें रोक लेता है। जब हम ध्यानाभ्यास करने के लिए बैठते हैं, जब हम किसी अन्य की मदद करना चाहते हैं, जब हम अपना जीवन नम्रता से गुज़ारना चाहते हैं, तो मन हमें उस दिशा से हटाने के लिए भी कोई न कोई विचार भेज देता है। मन का यह साधन तब से लगातार चल रहा है जब से हमारा जन्म हुआ था, और तब से लेकर विचारों की लगातार रहने वाली झड़ी में आत्मा अपने लक्ष्य को भूल चुकी है।

तो फिर हमारी आत्मा जीवन के इस खेल में जीत कैसे सकती है? संत-महापुरुष हमें याद दिलाते हैं कि प्रभु प्रेम के महासागर हैं। हमारी आत्मा भी इस महासागर का अंश होने के नाते प्रेम है, और प्रभु के पास वापस जाने का रास्ता भी प्रेम है। जीवन के इस खेल को जीतने के लिए, हमारी आत्मा को प्रभु के प्रेम का अनुभव करने की आवश्यकता है।

जहाँ एक ओर मन हमें इस दुनिया की चीज़ों से प्रेम करने के लिए उकसाता है, वहीं दूसरी ओर संत-महापुरुष हमें हमारे सीमित दृष्टिकोण से ऊपर उठने के लिए प्रेरित करते हैं, तथा समझाते हैं कि इस भौतिक जीवन से परे भी हमारा अस्तित्व है। वे हमें बताते हैं कि हमारे भीतर आध्यात्मिक मंडल मौजूद हैं, जोकि इस भौतिक मंडल के साथ-साथ ही अस्तित्व में हैं। ये रूहानी मंडल हमें जागृति प्रदान करते हैं, हमें शांति का अनुभव कराते हैं, हमें सत्य का अनुभव कराते हैं, और हमें प्रभु के संपर्क में ले आते हैं। संत-महापुरुष हमें ध्यानाभ्यास की विधि सिखाते हैं, जिसके द्वारा हम इन आंतरिक मंडलों का अनुभव कर सकते हैं। एक बार जब हम स्वयं इन आंतरिक ख़ज़ानों का अनुभव कर लेते हैं, तो वो सदा हमारे साथ रहते हैं और फिर मन हमें भटका नहीं पाता है, महाराज जी ने फ़र्माया। प्रभु के प्रेम का अनुभव करने से हमारी आत्मा पोषित और शक्तिशाली बनती है, और इस लायक बन जाती है कि मन से जीत कर अपने लक्ष्य तक पहुँच सके।