अपनी नज़रें अनंत की ओर रखें

दिसम्बर 19, 2020

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने इस जीवन के उद्देश्य के बारे में बताया और समझाया कि हम कैसे उसे ध्यानाभ्यास के द्वारा पा सकते हैं। इस संसार में इंद्रियों के स्तर पर जीते हुए, हम इस दुनिया को ही असली समझते रहते हैं और हम अपना सारा समय बाहरी दौलत में स्थाई ख़ुशियाँ तलाश करते हुए ही बिता देते हैं। लेकिन इस संसार की सभी चीज़ें अस्थाई हैं, महाराज जी ने फ़र्माया। बाहरी दुनिया के कभी न ख़त्म होने वाले कार्यों से थक कर, हम सदा-सदा की ख़ुशी और शांति पाने के लिए आख़िरकार प्रभु की तलाश में जुट जाते हैं।

हमारे जीवन का उद्देश्य है स्वयं को आत्मा के रूप में जानना और प्रभु को पाना, महाराज जी ने फ़र्माया। जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अंतर में जाते हैं, तो हमारी आत्मा आंतरिक रूहानी मंडलों में उड़ान भर पाती है और हमें भौतिकता से दिव्यता की ओर ले जाती है। ध्यानाभ्यास में तरक्की करने के लिए हमें प्रयासरहित प्रयास करना होगा। सितार से मधुर धुन तभी निकलती है जब उसकी तारें न तो बहुत कसी हुई हों और न ही बहुत ढीली हों। उसी तरह, हमारी आंतरिक दृष्टि एकाग्र तो होनी चाहिए, लेकिन दबाव या ज़बरदस्ती वाली नहीं होनी चाहिए। हमें एक आरामदायक लेकिन चुस्त आसन में बैठना चाहिए, तथा प्रेमपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए कि प्रभु हमें वो अनुभव दें जो हमारे लिए सही हो। जब हम प्रेम के साथ बैठते हैं और उसका आनंद लेते हैं जो कुछ प्रभु हमें अपनी रज़ा से दें, तो रूहानी खज़ाने हमारे सामने खुलने शुरू हो जाते हैं।