अपनी नज़र लक्ष्य पर रखें

जून 5, 2021

इस मानव जीवन का एक अन्य पहलू भी है, महाराज जी ने फ़र्माया। हमें यह मानव चोला इसीलिए दिया गया है ताकि हम स्वयं को आत्मा के रूप में जान सकें और प्रभु को पा सकें, और ऐसा करने के बाद, अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवा सकें। प्रभु हमारे भीतर हैं, और हम प्रभु का अनुभव कर सकते हैं जब हम आंतरिक रूहानी यात्रा पर जाते हैं। इसके लिए, हमें बाहरी संसार से ऊपर उठने और अपने अंतर में जाने की सही तकनीक सीखनी होगी।

प्रभु की ओर जाने वाले मार्ग में कई रुकावटें और मोड़ आते हैं। विचार और इच्छाएँ मन से पैदा होते हैं, और हमें अपनी यात्रा पर आगे बढ़ने से रोकते हैं। जब एक इच्छा पूरी होती है, तो हमें क्षणिक ख़ुशी मिलती है, जिससे हमें गलतफ़हमी हो जाती है कि हम अपनी मन्ज़िल तक पहुँच गए हैं, जबकि असल में हम मार्ग पर एक मोड़ तक ही पहुँचे होते हैं। हमें ख़याल रखना चाहिए कि हम मार्ग के किसी मील के पत्थर को अपनी मन्ज़िल न समझ बैठें। हमें रुकना नहीं चाहिए, बल्कि अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहना चाहिए, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। यह ज़रूरी है कि हम अपना ध्यान हमेशा अपने लक्ष्य की ओर लगाए रखें और मार्ग में आने वाले प्रलोभनों की ओर ध्यान न दें।

हमें रोज़ाना ध्यान टिकाने की आदत बनानी चाहिए और ध्यानाभ्यास तकनीक में पूरी तरह से अभ्यस्त हो जाना चाहिए, ताकि हम लंबे समय तक अपने ध्यान को अंतर में एकाग्र कर सकें और प्रभु की मीठी याद में बैठ सकें। जब हम अपने शरीर को शांत करते हैं और मन को शांत करते हैं, तो हम अंदरूनी यात्रा पर जाकर प्रभु की ज्योति व श्रुति का अनुभव करते हैं। धीरे-धीरे, जैसे-जैसे हमारी तकनीक और सही होती जाती है तथा हम अपना ध्यान लक्ष्य की ओर लगाए रखते हैं, तो हम अवश्य ही उस उद्देश्य को पूरा कर लेते हैं जिसके लिए हम सब यहाँ आए हैं।