अंदरूनी दिशासूचक: संत राजिन्दर सिंह जी महाराज का सत्संग

जनवरी 12, 2020

एक बेहद सुंदर और प्रेरणादायी सत्संग के द्वारा संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने सभी को नए साल की सही शुरुआत प्रदान की, और हमें उस परम लक्ष्य की याद दिलाई जिसे पाने के लिए हम सब यहाँ आए हैं, तथा समझाया कि अपने जीवन में और आने वाले साल में हमें कौन सी प्राथमिकताएँ निर्धारित करनी चाहियें।

 

भौतिक इंद्रियों के स्तर पर जीते हुए, महाराज जी ने फ़र्माया, हम स्वयं को शरीर ही समझने लगे हैं। हम यही सोचते हुए बड़े होते हैं कि जीवन का उद्देश्य पैसा और शोहरत कमाना तथा दुनियावी चीज़ें इकट्ठा करना ही है। इसीलिए हम ज़िन्दगी भर उन्हीं कार्यों में लगे रहते हैं जो हमें इन भौतिक उद्देश्यों को पूरा करने में मदद करते हैं, क्योंकि हम सोचते हैं कि हमें इन्हीं चीज़ों से ख़ुशियाँ मिलेंगी।

 

असल में, महाराज जी ने समझाया, हमारा वास्तविक स्वरूप है हमारी आत्मा। यह सीमित आयु वाला इंसानी जन्म हमें इसीलिए दिया गया है ताकि हम इस सच्चाई को जान सकें, और आध्यात्मिक यात्रा पर जाकर अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवा सकें – यही इस मानव चोले में आने का उच्चतम उद्देश्य है। अब यह हम पर निर्भर है कि हम अपने सीमित समय का सही इस्तेमाल करके इस उद्देश्य को पूरा करें।

 

महाराज जी ने एक शिक्षाप्रद कहानी की मदद से यह समझाया।

 

इस इंसानी जन्म में, हमें वो सभी पदार्थ दिए गए हैं जो हमें आध्यात्मिक यात्रा पर जाने के लिए चाहियें। इसमें शामिल है हमारा अंदरूनी दिशासूचक। जिस तरह ध्रुव तारा समय की शुरुआत से ही भटके हुए यात्रियों को दिशा दिखाता आया है, और जिस तरह ग्लोबल पोज़िशिनिंग सिस्टम (GPS) आज के समय में हमें राह दिखाता है, उसी तरह आध्यात्मिक क्षेत्र, जिसमें विशाल रूहानी मंडल शामिल हैं, की भी एक पथ-प्रदर्शक प्रणाली है। यह है गॉड्स पोज़िशिनिंग सिस्टम (GPS), यानी प्रभु की दिशा प्रणाली। बाहरी GPS, जो अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट्स से सूचना एकत्रित करता है, की तरह ही दिव्य GPS भी प्रभु की ज्योति व श्रुति से बने सैन्सर्स का प्रयोग करता है।

 

गॉड्स पोज़िशिनिंग सिस्टम, जिसे प्रभु ने इस दुनिया के हरेक इंसान के अंदर रखा है, हमें प्रभु के पास वापस पहुँचा सकता है। अब यह हम पर है कि हम इस दिव्य GPS के साथ जुड़ें, ताकि हम प्रभु के नज़दीक पहुँचते चले जायें। प्रभु की ज्योति और श्रुति के साथ जुड़ने की विधि को ही ध्यानाभ्यास कहते हैं। जब हम अपने अंतर में ध्यान टिकाते हैं, तो एक पूर्ण सत्गुरु की मदद व मार्गदर्शन से, हम एक-एक कदम करके अपने लक्ष्य तक पहुँचते जाते हैं संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया।