ध्यानाभ्यास के द्वारा अंतरीय अंतरिक्ष की यात्रा

जुलाई के महीने में एक नहीं बल्कि दो ऐसी अंतरिक्ष यात्राएँ की गईं, जिनमें साधारण मनुष्यों को अंतरिक्ष की सीमा तक ले जाया गया, जिससे अंतरिक्ष पर्यटन की शुरुआत हुई। अपने रविवार के सत्संग में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने एक अन्य तरह की यात्रा की बात की। यह यात्रा हमारी सीमाओं को फैलाती है और हमारे अंदर एक बहुत बड़ा परिवर्तन ले आती है: अंतरीय अंतरिक्ष की यात्रा – ये वो विशाल मंडल हैं जो हमारी भौतिक चेतनता से परे मौजूद हैं।
बाहरी अंतरिक्ष की यात्रा से अलग, अंतरीय अंतरिक्ष की यात्रा पर जाने के लिए किसी भी प्रकार की भौतिक पूंजी या निवेश की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए किसी लॉन्चिंग पैड, या अंतरिक्ष-यान, या टेक-ऑफ़ से लैन्डिंग तक किसी विस्तृत मानचित्रण की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए एक ख़ास स्तर की शारीरिक सेहत और बल की भी ज़रूरत नहीं है। महाराज जी ने समझाया कि ऐसा इसीलिए क्योंकि अंतरीय अंतरिक्ष हमारे भीतर ही है, और हम इंसानों के पास वो सबकुछ है जो इसकी खोज करने के लिए हमें चाहिए।
अंतरीय अंतरिक्ष में जाने की प्रक्रिया को ही ध्यानाभ्यास कहते हैं। इसके लिए हमारा लॉन्चिंग पैड है हमारी आध्यात्मिक या तीसरी आँख, जो आंतरिक रूहानी मंडलों में जाने का द्वार है। जो चीज़ अंतरीय अंतरिक्ष में यात्रा करती है वो हमारा शरीर नहीं, बल्कि हमारी आत्मा है, जोकि हमारा सच्चा स्वरूप है। अंतरीय अंतरिक्ष में यात्रा करने के लिए हमें अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक मंडलों में केंद्रित करना होता है। इस काम में जो शक्ति हमारी मदद करती है, वो है प्रभु की दिव्य ज्योति और श्रुति। प्रभु के प्रेम में रंगकर, हम अपने सच्चे स्वरूप को पहचान जाते हैं, और हम अंदर से परिवर्तित हो जाते हैं। तब हम अधिक प्रेमपूर्ण और शांत हो जाते हैं, और समस्त जीवन की एकता को स्वीकार कर लेते हैं। धीरे-धीरे, यह आंतरिक यात्रा हमें हमारी आत्मा और परमात्मा के मिलन की ओर ले जाती है। इस सबकी शुरुआत होती है ध्यानाभ्यास के साथ।