ध्यानाभ्यास के द्वारा साफ़ देखना सीखें

यह इंसानी स्वभाव है कि हम संसार को उन दृष्टिकोणों या मान्यताओं के द्वारा देखते हैं जो हमारे आसपास की दुनिया को देखने के हमारे नज़रिये के द्वारा पैदा होती हैं। अपने अहंकार के कारण हम ख़ुद को दूसरों से अलग और अक्सर उनसे बेहतर भी समझते हैं , संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने फ़र्माया। अलग-अलग मान्यताओं के कारण दूसरों के साथ हमारे बर्ताव पर असर पड़ता है और दूसरों के साथ हमारी शत्रुता हो जाती है, क्योंकि हम हमेशा ख़ुद को ही सही समझते हैं। ऐसे में हमारे जीवन में और आसपास के वातावरण में बहुत हलचल और तनाव आ जाता है। इस कारण सभी लोग दुख-दर्द से घिर जाते हैं। अगर हम ऐसे ही जीते रहेंगे, तो हमारा जीवन हमेशा हलचल और तनाव से घिरा रहेगा।
अगर हमें एक शांत और ख़ुश जीवन जीना है, तो हमें सही तरीके से जीना होगा, महाराज जी ने फ़र्माया। हमें पहले अपने सच्चे स्वरूप का और प्रभु के साथ अपने रिश्ते का अनुभव करना होगा। ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं। ध्यानाभ्यास के द्वारा हम अपने सच्चे स्वरूप को जान सकते हैं और अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवा सकते हैं। प्रभु की ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ने से वो भ्रम की पर्तें उतर जाती हैं जो हमारी आत्मा के ऊपर चढ़ी हैं, और फिर धीरे-धीरे हमारा दृष्टिकोण साफ़ होता जाता है। सही समझ आ जाने से हमारे विचार सही हो जाते हैं; सही विचारों से सही शब्द पैदा होते हैं; और सही शब्दों से सही कार्यों का जन्म होता है। दिव्य प्रेम से परिवर्तित हो जाने के कारण हम करुणा, सच्चाई, नम्रता, और निष्काम सेवा जैसी भावनाओं से भरपूर हो जाते हैं। हम दूसरों में ख़ुशियाँ फैलाते हैं और उनके दुख-दर्द बाँटते हैं। ऐसा करने से हम द्वैत की दुनिया से ऊपर उठकर एकता के संसार को गले लगा लेते हैं।