क्या हम अपने समय का सदुपयोग कर रहे हैं?

हम चाहे कोई भी हों या कहीं भी रहते हों, हर दिन की शुरुआत में हम में से हरेक को चौबीस घंटे मिलते हैं, जिनका उपयोग हम चाहे जैसे कर सकते हैं। इनमें से हम कुछ घंटे नींद को देते हैं, कुछ घंटे अपने दैनिक नित्यकर्म पूरे करते हैं, तथा कई घंटे अपने परिवार, समाज और विश्व के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने में खर्च करते हैं। इस नए साल की शुरुआत में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने सवाल पूछा: क्या हम अपने समय का सदुपयोग कर रहे हैं?
हम चाहे कोई भी हों या कहीं भी रहते हों, हर दिन की शुरुआत में हम में से हरेक को चौबीस घंटे मिलते हैं, जिनका उपयोग हम चाहे जैसे कर सकते हैं। इनमें से हम कुछ घंटे नींद को देते हैं, कुछ घंटे अपने दैनिक नित्यकर्म पूरे करते हैं, तथा कई घंटे अपने परिवार, समाज और विश्व के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने में खर्च करते हैं। इस नए साल की शुरुआत में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने सवाल पूछा: क्या हम अपने समय का सदुपयोग कर रहे हैं?
हर दिन और हर क्षण, समय बीतता जा रहा है, महाराज जी ने फ़र्माया। हमें अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए। जो समय हम सांसारिक गतिविधियों में लगायेंगे, उनसे हमें केवल ऐसे लाभ मिलेंगे जो अस्थाई होंगे या जो हमारे इस संसार से जाने के बाद यहीं पीछे छूट जायेंगे। जब हम अपना ध्यान आंतरिक मंडलों में लगायेंगे, तो हम स्थायित्व के साथ जुड़ जायेंगे। जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने अंतर में जाने के लिए समय देंगे, तो हम प्रभु के प्रेम व प्रकाश के साथ जुड़ जायेंगे। यह संपर्क हमें खुशी व आनंद की अवस्था में पहुँचा देता है। हम प्रभु के साथ अपने संबंध को जान जाते हैं, और अपने जीवन में हर समय प्रभु की उपस्थिति का अनुभव करने लगते हैं। हमारा पूरा अस्तित्व खुशी और शांति से भरपूर हो जाता है, जो हमसे होकर हमारे मिलने-जुलने वालों में भी फैलने लगती है।
दिन भर में हमें अपने परिवार, दोस्तों, सहकर्मियों, पड़ोसियों, समुदायों, शहरों, देशों, और विश्व के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह अवश्य करना चाहिए। इसी के साथ, हमें अपनी आध्यात्मिक तरक्की को भी प्राथमिकता देनी चाहिए और हर दिन ध्यानाभ्यास के लिए समय निकालना चाहिए। ध्यान टिकाने की आदत बनाने के लिए हमें दिन का एक समय निर्धारित कर लेना चाहिए। जितना अधिक समय हम ध्यानाभ्यास में देंगे, उतना ही अधिक हम खुश रहेंगे, और हम पायेंगे कि हम वैसा ही जीवन जीने लगे हैं जैसा उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए ज़रूरी है जिसके लिए हम यहाँ आए हैं।