प्रभु पर ध्यान केंद्रित करें

ध्यानाभ्यास के लिए आवश्यक है कि हमारा शरीर और मन स्थिर हों। लेकिन जैसे ही हम ध्यान टिकाने के लिए अपनी आँखें बंद करते हैं, हमारे अंदर विचारों की धारा चल पड़ती है। ये विचार हमारे मन से पैदा होते हैं और हमें सही तरीके से ध्यान टिकाने नहीं देते हैं। जब हम अपने विचारों में बह जाते हैं, तो हम “ध्यानाभ्यास” से हटकर “विचाराभ्यास” करने लगते हैं, और इससे हम भटक जाते हैं। ऐसे में हम ध्यानाभ्यास के दौरान आंतरिक खज़ानों पर ध्यान कैसे टिकाए रख सकते हैं?
एक ज्ञानवर्धक कहानी की मदद से महाराज जी ने समझाया कि हमें ध्यानाभ्यास में एकाग्र और नियमित रहने का दृढ़-निश्चय करना चाहिए। जैसे समुद्र के तल में गड़ा एक पत्थर समुद्र में चल रही लहरों, तूफ़ानों और बदलते मौसमों से अप्रभावित रहता है, वैसे ही हमें भी अपने मन में चल रहे विचारों के बावजूद स्थिर व अप्रभावित रहना चाहिए। ऐसा करने के लिए हमें अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर पूरी तरह से प्रभु पर केंद्रित करना चाहिए, मन ही मन प्रभु के नामों का जाप करके। इससे हमारा मन हमें विचार नहीं भेज पाता है और प्रभु की ओर एकाग्र रहता है। जब हम अंतर में एकाग्र होते हैं, तो हमारा ध्यान आंतरिक मंडलों के प्रवेशद्वार पर इकट्ठा हो जाता है। फिर हमारी आत्मा रूहानी यात्रा पर जाकर खुशी, शांति व परमानंद से भरपूर मंडलों का अनुभव करने लगती है।
सभी खज़ाने हमारे भीतर ही हैं। हम सब इन खज़ानों को पा सकते हैं, इनका अनुभव कर सकते हैं; सवाल केवल इतना है कि हम अपना ध्यान कहाँ लगाते हैं। जब हम प्रभु पर ध्यान टिकाने का निश्चय करते हैं और पूरी एकाग्रता के साथ ऐसा करते हैं, तो हम जल्द से जल्द प्रभु की ओर तरक्की करते जाते हैं।