हमारी सबसे मूल्यवान सम्पत्ति

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने हमारी सबसे मूल्यवान सम्पत्ति के बारे में बताया। अपनी भौतिक इंद्रियों के स्तर पर जीते हुए, हम खुद को केवल शरीर, मन, और बुद्धि ही समझते रहते हैं, महाराज जी ने फ़र्माया। इसी वजह से हम इनको ही अपनी सबसे मूल्यवान सम्पत्ति समझते रहते हैं। हम अपना सारा समय और प्रयास अपने शरीर को तंदुरुस्त रखने में, अपने मन को बलवान करने में, और अपनी बुद्धि को तेज़ करने में ही लगा देते हैं।
लेकिन जब हम इस संसार से जाते हैं, तो जिस शरीर का हम इतना अधिक ख़याल रखते थे, वो नष्ट कर दिया जाता है और वापस जड़ पदार्थ में मिल जाता है। भौतिक मन और बुद्धि भी इस शरीर के साथ ही नष्ट हो जाते हैं। ये सब जीवन रूपी विशाल खेल में बस क्षणिक भूमिका अदा करते हैं, महाराज जी ने फ़र्माया। लेकिन हमारी भौतिक मृत्यु के बाद भी जो चीज़ रह जाती है, वो है हमारी आत्मा, जोकि हमारा सच्चा स्वरूप है।
आत्मा, परमात्मा का अंश है, और यही इस शरीर को जान दे रही है। यही हमारी सबसे मूल्यवान सम्पत्ति है, लेकिन फिर भी हम इससे अनजान हैं। हम अपनी आत्मा का अनुभव तभी कर पाते हैं जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपना ध्यान बाहरी संसार से हटाकर अंतर में केंद्रित करते हैं। तब हम अपने आत्मिक स्वरूप के प्रति जागृत हो उठते हैं और उस सच्चे उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं जिसके लिए हमें यह मानव चोला दिया गया है।