एक-दूसरे से प्रेम करें

आज के अपने सत्संग में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने हमें उस उद्देश्य की याद दिलाई जिसे पूरा करने के लिए हमें यह मानव चोला दिया गया है। हम यहाँ प्रभु से प्रेम और एक-दूसरे से प्रेम करने के लिए आए हैं। प्रभु से प्रेम करने के लिए हमें प्रभु का अनुभव करना होगा, और ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं।
जब हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अंतर में एकाग्र करते हैं, तो हम अंदरूनी आध्यात्मिक यात्रा पर जाकर प्रभु के प्रेम व प्रकाश का अनुभव करते हैं। यह दिव्य प्रेम हमारे रोम-रोम में समा जाता है और हम प्रभु-प्रेम में डूब जाते हैं, और फिर इसे अपने मिलने-जुलने वालों में भी फैलाने लगते हैं। जब हम प्रभु-प्रेम के संपर्क में आते हैं, और जब हम अपनी आत्मा का अनुभव कर लेते हैं, जोकि परमात्मा का अंश है, तब हम सभी जीवों में प्रभु की उपस्थिति का अनुभव करने लगते हैं।
इस अवस्था में पहुँचकर हम अपनी आपसी एकता को स्वीकार कर लेते हैं। आत्मा के स्तर पर हम सब एक हैं। तब हम ख़ुद को दूसरों से अलग नहीं समझते हैं, और जो दीवारें हमें कभी एक-दूसरे से जुदा करती थीं, वो टूटने लगती हैं। प्रभु के प्रेम में रंगकर हम सबको अपना ही मानकर, प्रभु के एक ही परिवार के सदस्य मानकर, गले से लगा लेते हैं।
संत-महापुरुष हमें इस सच्चाई की याद दिलाने के लिए इस संसार में आते हैं। वे हमें ध्यानाभ्यास की तकनीक सिखाते हैं, जिसके द्वारा हम इस सच्चाई का अनुभव कर पाते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हम कैसे अपने जीवन को प्रेम की नींव पर टिका सकते हैं। वे हमें नैतिक सद्गुण धारण करने की सीख देते हैं, ताकि हम प्रेम व करुणा से भरपूर इंसान बन जायें, जो प्रभु-प्राप्ति के मार्ग पर एक-दूसरे की मदद करते हैं, तथा अपने उद्देश्य की ओर कदम बढ़ाते जाते हैं – जो है अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवाना।