स्थाई खुशियों का रहस्य? याद करो कि हम कौन हैं

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने स्थाई खुशियों की अवस्था की हमारी अंतहीन खोज के बारे में बात की। हम अपनी ऊर्जा उसी ओर लगा देते हैं जहाँ से हम सोचते हैं कि हमें खुशियाँ मिलेंगी, लेकिन हम शीघ्र ही जान जाते हैं कि इस क्षणभंगुर और अस्थाई भौतिक संसार में हमें कभी भी स्थाई खुशियाँ नहीं मिल सकती हैं। जब इंसानी जीवन आसान नहीं है और हर कोई अपनी अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहा है, तो हम स्थाई खुशियाँ कैसे पा सकते हैं?
खुशी अपने पास जो भी है उसमें संतुष्ट रहने में है, और यह जानने में है कि हमें किस चीज़ से सच्ची खुशी मिल सकती है, महाराज जी ने समझाया। भौतिक इंद्रियों के स्तर पर रहते हुए, और खुद को केवल शरीर और मन ही समझते हुए, हम यही सोचते हैं कि भौतिक स्तर पर होने वाली चीज़ों से ही हमें खुशियाँ मिल सकती हैं। लेकिन हम भूल चुके हैं कि हम असल में कौन हैं। हम भूल चुके हैं कि हमारा असली स्वरूप आत्मिक है, और हमारा मूल है आत्मा, जोकि परमात्मा का अंश है। हम प्रभु के धाम से आए हैं, और हमें जो चीज़ सच्ची खुशी दे सकती है वो है प्रभु के साथ जुड़ना।
संत-महापुरुष इस संसार में हमें याद दिलाने के लिए आते हैं। ध्यानाभ्यास की तकनीक सिखाकर वे हमें हमारे सच्चे स्वरूप का अनुभव करने में मदद करते हैं, तथा प्रभु के उस प्रेम व प्रकाश का सीधा अनुभव प्रदान करते हैं जो हमारे भीतर ही मौजूद है। जब हम प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम स्थाई प्रेम और खुशियों के महासागर में डूब जाते हैं। हम जीवन की सच्चाई को जान जाते हैं, तथा हम खुद को और प्रभु के साथ व एक-दूसरे के साथ अपने संबंध को ज़्यादा गहराई से समझने लगते हैं। एक बार जब हम प्रभु-प्रेम की मिठास को चख लेते हैं, तो हम और अधिक पाने के लिए तड़पने लगते हैं, तथा जान जाते हैं कि उससे ही हमें वो स्थाई खुशियाँ मिलेंगी जिनकी हमें तब से तलाश है जब से हम पैदा हुए हैं। जब हम समझ व ज्ञान की उस अवस्था में पहुँच जाते हैं, तो हमारा जीवन खुशी, सौहार्द, और शांति से भरपूर हो जाता है।
इसीलिए, हालाँकि जीवन आसान नहीं है, लेकिन यह हम पर निर्भर है कि हम याद करें कि हम कौन हैं और स्थाई खुशियाँ पाने के अपने जन्मसिद्ध-अधिकार को प्राप्त करें। हममें से हरेक को वो सबकुछ दिया गया है जो अपने सच्चे स्वरूप को जानने के लिए और स्थाई खुशियाँ पाने के लिए हमें चाहिए। इस सबकी शुरुआत होती है ध्यानाभ्यास के साथ।