प्रेम अधिक करें। विचार कम करें।

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने दूसरों के साथ हमारी बातचीत और व्यवहार के बारे में बात की और समझाया कि उनका हम पर क्या असर हो सकता है। अपना जीवन जीते हुए, हम देखते हैं कि हमारे आसपास के लोगों के साथ हमारे रिश्ते हमारे जीवन पर गहरा असर डालते हैं। चाहे हमारे परिवार के सदस्य हों, मित्र हों, या अजनबी हों, लोगों के साथ हमारी बातचीत हम पर लंबे समय तक प्रभाव डाल सकती है, तथा हमारे अंदर ऐसे विचार और भावनाएँ पैदा कर सकती है जो हमारे जीवन में हलचल ला सकती हैं।
एक क्षेत्र जिस पर बहुत अधिक असर पड़ता है, वो है ध्यानाभ्यास, महाराज जी ने फ़र्माया। जब हम ध्यान टिकाने के लिए बैठते हैं, तो हमारे सामने जो सबसे बड़ी रुकावट आती है, वो है अपने विचारों पर काबू पाना। इनका विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि ये विचार अक्सर दूसरों के साथ हमारी बातचीत के कारण पैदा होते हैं। अपने विचारों को कम करने और ध्यानाभ्यास में एकाग्र होने के लिए, हमें दूसरों के साथ अपनी बातचीत का विश्लेषण करना होगा। संत-महापुरुष हमें बताते हैं कि हमें इस तरह बातचीत करनी होगी जिससे हमारी आध्यात्मिक यात्रा पर नकारात्मक असर न पड़े। इसकी शुरुआत होती है सबसे प्रेम से बातचीत करने से। जब हम किसी मुलाकात में प्यार ले आते हैं, तो हम अपेक्षाएँ नहीं रखते हैं और न ही किसी अन्य को तकलीफ़ पहुँचाने की कोशिश करते हैं। और अगर कोई अन्य व्यक्ति हमें तकलीफ़ पहुँचाता है, तो हम उसकी ओर ध्यान नहीं देते हैं, तथा दूसरों की कमियों को नज़रअंदाज़ कर पाते हैं।
जब हम प्रेम के साथ दूसरों से मिलते हैं, तो हम उनमें केवल अच्छाई ही देखते हैं। हम अपनी बातचीत में विनम्र और खुले बने रहते हैं, तथा हमारी सुनने की क्षमता बढ़ जाती है। जब हम विनम्र और खुले दिल से दूसरों की बात सुनते हैं, और जब हम जवाब देने से पहले थोड़ा सोचते हैं, तो हमारी बातचीत अवश्य सकारात्मक और सौहार्दपूर्ण होती है। जितना अधिक हमारी बातचीत प्रेमपूर्ण होती है, उतना ही हमें ध्यानाभ्यास के समय कम विचार आते हैं और हम बेहतर तरीके से एकाग्र हो पाते हैं, तथा उतना ही शीघ्र हम अंदरूनी मंडलों की यात्रा पर जा पाते हैं।