ध्यानाभ्यास करने का असली कारण

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया कि कैसे ध्यानाभ्यास आज की दुनिया में लोकप्रिय और मुख्यधारा बन चुका है। आज यह केवल पूर्वी देशों का अभ्यास नहीं रह गया है, बल्कि आज संसार भर के लोग ध्यानाभ्यास करते हैं, ताकि इसके शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक लाभों को ग्रहण कर सकें। लेकिन एक अन्य कारण भी है जिसके लिए हमें ध्यानाभ्यास करना चाहिए, और वो कारण इस बात से संबंधित है कि हम असल में कौन हैं।
शारीरिक इंद्रियों के स्तर पर जीते हुए हम खुद को केवल शरीर, मन, और भावनाएँ ही समझते रहते हैं। लेकिन हमारा एक अन्य पहलू भी है, हमारा अंदरूनी पहलू, जो अमर और अविनाशी है, और वो है हमारी आत्मा। कोई भी चीज़ अगर ढक दी जाती है, तो उसे केवल उसके आवरण के द्वारा ही जाना जाता है। हमारी आत्मा, जो इस वक़्त इस मानव चोले के अंदर निवास कर रही है, केवल अपने आवरण, यानी कि शरीर के द्वारा ही जानी जाती है। लेकिन असल में आत्मा ही है जो इस शरीर को जान दे रही है और शरीर के मृत हो जाने के बाद भी कायम रहती है। इसीलिए, ध्यानाभ्यास करने का असली कारण है अपनी आत्मा का पोषण करना, महाराज जी ने फ़र्माया।
ध्यानाभ्यास में हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक रूहानी मंडलों में एकाग्र करते हैं। जब हम अपने ध्यान को तीसरी आँख पर एकाग्र करते हैं, जोकि आंतरिक मंडलों का प्रवेशद्वार है, तो हमारे सामने प्रेम, प्रकाश, व आनंद से भरपूर एक नया संसार खुल जाता है। हम अपने आपको आत्मा के रूप में जान जाते हैं और प्रभु के साथ अपने संबंध का अनुभव कर लेते हैं, जोकि वो स्रोत हैं जिनसे हमारी आत्मा उत्पन्न हुई है। ध्यानाभ्यास में प्रभु के प्रेम व प्रकाश के संपर्क में आने से हमारी आत्मा पोषित होती है। जितना अधिक हम ध्यानाभ्यास करते हैं, उतना ही अधिक हमारी आत्मा पोषित होती है और प्रभु के पास वापस जाने वाली यात्रा पर चल पाती है।