आंतरिक अंतरिक्ष के नज़ारों का अनुभव करें

अक्टूबर 23, 2021

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने आंतरिक अंतरिक्ष के नज़ारों के बारे में बताया, जिन्हें अनुभव करने के बाद हम अपना जीवन उस तरीके से जीने लगते हैं जैसे हमें जीना चाहिए।

जब से इंसान इस धरती पर आए हैं, हम रात के आकाश को अचरज के साथ देखते रहे हैं। हर साल बाहरी अंतरिक्ष की खोज में बहुत अधिक संसाधन खर्च किए जाते हैं, क्योंकि सुदूर जगहों में रूचि रखना इंसानी स्वभाव है। बाहरी अंतरिक्ष को जानने के प्रयासों में, हम इंसानी रिश्तों से दूर होते चले गए हैं। हम अपने परिवारजनों, दोस्तों, और पड़ोसियों से दूर हो गए हैं। हम अपने आसपास के लोगों के दिलों में मौजूद दुख-दर्द से अनजान बने रहते हैं। एक-दूसरे से अलग-थलग ज़िन्दगियाँ बिताने के कारण, इंसानी समुदाय होने के नाते हमारी ताकत कम हो गई है।

यही हमारे समय की कहानी है, लेकिन हमें अपना जीवन ऐसे जीने के लिए नहीं दिया गया था। इसके बजाय, महाराज जी ने हमें फिर से उस कथन की याद दिलाई जो उन्होंने कुछ ही सप्ताह पूर्व दुनिया को दिया था – “चेतन बनो। जुड़े रहो। देखभाल करो।” हम चेतन अवस्था में पहुँचकर अपने आपको आत्मा के रूप में कैसे अनुभव कर सकते हैं? हम ऐसा तब कर सकते हैं जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अंतर में एकाग्र करते हैं।

ध्यानाभ्यास में हम आंतरिक अंतरिक्ष के मंडलों में यात्रा करते हैं जो हमारे भीतर ही मौजूद हैं, तथा प्रभु की दिव्य ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ जाते हैं, जो हमें प्रेम, खुशी, और आनंद से भरपूर कर देती है। जब हम प्रभु के साथ अपने रिश्ते का अनुभव कर लेते हैं, तो हम स्वयं को प्रभु से जुड़ा हुआ अनुभव करने लगते हैं और खुद को संसार में अकेला नहीं समझते हैं। हम देखने लगते हैं कि सभी प्राणी प्रभु से जुड़े हुए हैं, और तब हम प्रभु की बनाई समस्त सृष्टि के साथ अपने संबंध को जान जाते हैं। हमारे अंदर एक बदलाव आ जाता है और हम एक दयालु इंसान बन जाते हैं। हम जहाँ भी जाते हैं, वहाँ खुशियाँ लाते हैं, तथा दूसरों का दुख-दर्द बाँटते हैं। अगर हम अपने इंसानी चोले से पूरा-पूरा लाभ उठाना चाहते हैं, तो हमें उस ढंग से जीना होगा जैसा प्रभु चाहते हैं कि हम जियें। हमें आंतरिक अंतरिक्ष के नज़ारों पर ध्यान टिकाना होगा, ताकि हम प्रभु के प्रेम व प्रकाश का अनुभव कर सकें, प्रभु के साथ और एक-दूसरे के साथ जुड़ सकें, एक-दूसरे की मदद कर सकें, और जल्द से जल्द प्रभु के पास वापस पहुँच सकें।