समस्त जीवन की एकता के प्रति जागृत होना

वर्तमान समय में हमने देखा है कि कैसे एक वैश्विक महामारी ने परिवारों, दोस्तो, और प्रियजनों को एक-दूसरे से दूर कर दिया है, क्योंकि हम एक-दूसरे को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते हैं। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अपने सत्संग की शुरुआत करते हुए इस दूरी की पीड़ा के बारे में बात की तथा हमें एक और दूरी की याद दिलाई: हमारी आत्मा की अपने स्रोत, परमात्मा, से दूरी।
आत्मा, जोकि हमारा सच्चा स्वरूप है, प्रभु का अंश है, महाराज जी ने समझाया। ये अनेकों युगों पहले प्रभु से अलग हो गई थी। इस मानव चोले में कैद आत्मा खुद को जानने के लिए और प्रभु के पास वापस पहुँचने के लिए तड़प रही है। जब प्रभु को पाने की हमारी तड़प सच्ची और गहरी होती है, तो प्रभु हमें एक पूर्ण सत्गुरु के पास ले आते हैं।
सत्गुरु हमें ध्यानाभ्यास की तकनीक सिखाते हैं जिसके द्वारा हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक मंडलों में एकाग्र कर पाते हैं। जब हम आंतरिक रूहानी मंडलों का अनुभव करते हैं, तो हमारे अंदर प्रभु का प्रेम जागृत हो जाता है। यह प्रेम हमारे जीवन में एक बदलाव ले आता है। हम समस्त जीवन की एकता के प्रति जागृत हो उठते हैं और हमारे अंदर एक नई तरह की संवेदनशीलता आ जाती है। इससे हम दूसरों की मदद करने लगते हैं, ताकि हम उनके जीवन में खुशियाँ और आनंद ला सकें।