मार्ग पर चलते हुए एक-दूसरे की मदद करें

जीवन की यात्रा में किसी न किसी बिंदु पर हमारे अंदर प्रभु को जानने की तीव्र तड़प पैदा होती है। प्रभु को पाने के लिए हमें कैसा जीवन जीना चाहिए? आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने निष्काम सेवा के सद्गुण की बात की जो हमें प्रभु के करीब आने में मददगार साबित होता है। निष्काम सेवा, महाराज जी ने समझाया, का अर्थ है अपने साथी इंसानों की मदद करना और बदले में अपने लिए किसी ईनाम या पुरस्कार की अपेक्षा न रखना।
इस धरती पर अरबों इंसान जी रहे हैं, और हरेक के अपने अलग-अलग संघर्ष व परेशानियाँ हैं। चाहे शारीरिक तकलीफ़ें हों, या आर्थिक कठिनाइयाँ हों, या भावनात्मक और मानसिक परेशानियाँ हों – अगर प्रभु की दया से हम किसी की मुश्किल परिस्थिति में उसकी मदद करने की स्थिति में है, तो हमें ऐसा अवश्य करना चाहिए, महाराज जी ने समझाया। ऐसा करने से न केवल उनकी तकलीफ़ दूर होगी, बल्कि निस्वार्थ भाव से सेवा करने पर हमें भी अपनी आध्यात्मिक यात्रा में बहुत लाभ मिलेगा। इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि सेवा किस प्रकार की है; महत्वपूर्ण बात यह है कि हम ज़रूरत पड़ने पर हम निष्काम भाव से अपने साथी इंसानों का दुख हल्का करने में मदद करें। अगर हम में से हरेक ऐसा जीवन जीने लगेगा, तो कोई भी बच्चा कभी भी भूखा नहीं रहेगा, कोई भी वृद्ध कभी भी अकेलापन महसूस नहीं करेगा, और मानव समाज खुशहाल हो जाएगा।
यह इंसानी स्वभाव है कि हम उनकी मदद करते हैं जिन्हें हम अपना समझते हैं, लेकिन हम उस अवस्था में कैसे पहुँच सकते हैं जहाँ हम समस्त सृष्टि की सहायता करना चाहें? ऐसा तब होता है, महाराज जी ने समझाया, जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा पर जाते हैं और प्रभु की बनाई सृष्टि की एकता के प्रति जागृत हो उठते हैं। हम जान जाते हैं कि हम सब एक ही विशाल परिवार के सदस्य हैं। यह अनुभव हो जाने से हमारा हृदय विशाल हो जाता है, और हम दूसरों की सेवा करते हुए अपना जीवन गुज़ारने लगते हैं। जब हम दूसरों की मदद करने लगते हैं, तो हम आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं और अपने सच्चे घर वापस जाने की यात्रा पर तेज़ी से तरक्की करते जाते हैं।