प्रभु से मित्रता के अंतहीन आनंद का अनुभव करें

नवम्बर 27, 2021

जीवन के किसी न किसी मोड़ पर हमारे अंदर जीवन के अर्थ को लेकर और हमारे इस दुनिया में आने के उद्देश्य को लेकर सवाल उठने लगते हैं। जैसे-जैसे हम जीवन के विभिन्न पहलुओं और अध्यायों से गुज़रते जाते हैं, हम अपने रिश्ते-नातों का पोषण करने में और उन्हें दृढ़ करने में बहुत सारा समय और प्रयास लगाते हैं। लेकिन राह में कहीं ये रिश्ते ख़त्म हो जाते हैं, चाहे गलतफ़हमियों के कारण, अथवा स्थान की दूरी या मृत्यु की वजह से अलग हो जाने के कारण, और इससे हमारे जीवन में एक खालीपन आ जाता है। ये अनुभव हमें एक ऐसा रिश्ता ढूंढने के लिए प्रेरित करते हैं जो सदा-सदा रहने वाला हो, ताकि हम कभी भी इस संसार में खुद को अकेला महसूस न करें।

इस संसार के सभी रिश्ते एक दिन ख़त्म हो जायेंगे, महाराज जी ने फ़र्माया। केवल एक रिश्ता इस धरती पर हमारे जीवन के ख़त्म हो जाने के बाद भी कायम रहता है, और वो है प्रभु, या सृष्टिकर्ता, के साथ हमारा रिश्ता। तो, हम प्रभु के साथ अपने रिश्ते को विकसित कैसे करें? अपने जीवन में प्रभु को पहचानने के लिए हमें एकता और प्रेम के मार्ग को अपनाना होगा। सबसे पहले, हमें अपने जीवन की नींव को सद्गुणों, जैसे सच्चाई, नम्रता, करुणा, अहिंसा, और निष्काम सेवा, के द्वारा मज़बूत करना होगा। दूसरी बात, हमें अपने जीवन में प्रभु के प्रेम व प्रकाश का अनुभव करने के लिए कदम उठाने होंगे, और ऐसा तब होता है जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं। जब हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक रूहानी मंडलों में एकाग्र करते हैं, तो हम प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ जाते हैं और हर वक़्त प्रभु की उपस्थिति को महसूस करने लगते हैं। तब हम खुद को कभी भी अकेला महसूस नहीं करते हैं, और हमारा सारा डर और चिंताएँ ख़त्म हो जाती हैं।

प्रभु ने हमें अकेला नहीं छोड़ा है – ये हम हैं जो प्रभु को भूल गए हैं। अब ये हम पर है कि हम प्रभु को याद करने के लिए कदम उठायें। ऐसा तब होता है जब हम रोज़ाना ध्यानाभ्यास करने के लिए समय निकालते हैं।