ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु के प्रेम का अनुभव करें

दिसम्बर 5, 2021

आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने प्रभु के प्रेम के अवर्णनीय स्वरूप के बारे में बताया। इस भौतिक संसार में हम प्रेम को शब्दों, फूलों, और उपहारों के द्वारा व्यक्त करते हैं – इन सब चीज़ों के द्वारा हम किसी व्यक्ति के प्रति अपना प्रेम दर्शाते हैं, या किसी परिस्थिति के बारे में हम कैसा महसूस करते हैं यह दर्शाते हैं। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि कौन सी वस्तु इस्तेमाल की गई; महत्व उस भावना का है जिसे वो वस्तु दर्शाती है।

तो फिर आध्यात्मिक क्षेत्र का क्या, जोकि भौतिक तत्वों से बहुत ऊपर है? हम प्रभु के लिए अपना प्रेम कैसे दर्शा सकते हैं? और हम अपने लिए प्रभु के प्रेम का अनुभव कैसे कर सकते हैं? ऐसा हम प्रभु के साथ जुड़कर कर सकते हैं, महाराज जी ने समझाया। यह मिलाप बाहरी संसार में नहीं होता, क्योंकि प्रभु तो हमारे भीतर ही हैं। प्रभु के प्रेम का अनुभव तभी किया जा सकता है जब हम अंतर्मुख हों।

हमारा सच्चा स्वरूप, जोकि आत्मा है, प्रभु का अंश है, और यही सत्ता है जो हमारे शरीर को जान दे रही है। प्रभु का अनुभव करने के लिए हमें ध्यानाभ्यास के द्वारा खुद को आत्मा के रूप में अनुभव करना होगा। आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा पर जाकर हम प्रभु के प्रेम व प्रकाश के साथ जुड़ जाते हैं। प्रभु के प्रेम से भरपूर होने पर हम ऐसे परम आनंद का अनुभव करते हैं जो बाहरी संसार की किसी भी खुशी से कहीं अधिक होता है। प्रभु के प्रेम का अनुभव करने से हमारी आत्मा पोषित होती है और हम परिपूर्ण हो जाते हैं। प्रभु के प्रेम के साथ जुड़ने का आनंद अवर्णनीय है, और इसे जानने के लिए इसका अनुभव करना ज़रूरी है।