ध्यानाभ्यास के द्वारा प्रभु के साथ छुट्टी मनायें

इस वक़्त जबकि त्यौहारों व छुट्टियों का मौसम आने वाला है और पूरी दुनिया एक वैश्विक महामारी से जूझ रही है, तो दूसरे स्थानों में छुट्टियाँ मनाने के लिए जाना शायद संभव न हो पाए। लेकिन फिर भी हम एक ऐसी छुट्टी पर जा सकते हैं जो हमें यकीनन खुश और तरोताज़ा कर देगी, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने फ़र्माया।
ये कौन सी छुट्टी है? ये वो छुट्टी है जिसमें हम अपने घर में रहते हुए ही प्रभु के साथ समय बिता सकते हैं। प्रभु प्रेम और आनंद के महासागर हैं। प्रभु के साथ छुट्टी मनाने का अर्थ है इस आनंद के महासागर में तैरना। प्रभु हम में से हरेक के लिए उपलब्ध हैं। सवाल केवल यह है कि हम अपना ध्यान कहाँ लगाते हैं। अगर हम हर समय बाहरी संसार की गतिविधियों में ही व्यस्त और आकर्षित रहेंगे, तो हम प्रभु के उस अनंत और अविनाशी प्रेम से अनजान ही रहेंगे जो हमारे अंतर में है। आत्मा , जोकि हमारा सच्चा स्वरूप है, को खुशी तभी मिलती है जब वो प्रभु के साथ जुड़ जाती है, और ऐसा हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अनुभव कर सकते हैं। तो त्यौहारों के इस मौसम में, बाहरी संसार के आकर्षणों में खो जाने के बजाय, क्यों न हम ध्यानाभ्यास में बैठने के लिए थोड़ा समय निकालें और आंतरिक संसार की खुशियों की ओर ध्यान दें?