आत्मा की परमात्मा के पास वापस जाने की यात्रा

हमारी आत्मा को प्रभु से बिछुड़े हुए कई युग बीत चुके हैं, और वो प्रभु के पास वापस जाने के लिए तड़प रही है। यह मानव चोला, जोकि समस्त सृष्टि में सर्वोतम चोला है, प्रभु की ओर से हमारी आत्मा को दिया गया अनमोल उपहार है। इस चोले में हमें वो सबकुछ दिया गया है जो अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जानने के लिए और प्रभु को पाने के लिए हमें चाहिए।
लेकिन ऐसा करने के लिए हमें अपने ध्यान को बाहरी संसार के आकर्षणों से हटाकर आंतरिक दिव्य मंडलों की यात्रा पर जाना होगा, जहाँ प्रभु निवास करते हैं। ऐसा हम कर सकते हैं ध्यानाभ्यास की विधि के द्वारा, महाराज जी ने समझाया। जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं और अंतर में प्रभु की ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम इतनी अधिक खुशी व आनंद का अनुभव करते हैं जो हमें इस बाहरी संसार में कभी भी अनुभव नहीं होता है। जब हम अपने भीतर प्रभु की उपस्थिति को महसूस करने लगते हैं, तो प्रभु के लिए हमारा प्रेम दृढ़ हो जाता है, और फिर बाहरी संसार की कोई भी ताकत हमें प्रभु की ओर कदम बढ़ाने से रोक नहीं पाती है।
धीरे-धीरे हमारी आत्मा आंतरिक मंडलों में तरक्की करती चली जाती है, और आखिरकार हमारी आत्मा, प्रभु के प्रेम रूपी महासागर में लीन हो जाती है और अपने स्रोत में वापस मिल जाती है। तब वो उद्देश्य पूरा हो जाता है जिसके लिए हमें यह मानव चोला दिया गया है। आध्यात्मिक यात्रा वो सबसे अधिक पवित्र यात्रा है जिस पर हम जा सकते हैं। इस सबकी शुरुआत होती है ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक मंडलों के प्रवेशद्वार, अर्थात् अपनी आंतरिक आँख, पर ध्यान टिकाने से।