एक-एक कदम करके आगे बढ़ें

जनवरी 8, 2022

जब हम अपने जीवन की ओर देखते हैं, तो हम पाते हैं कि हम लगातार उतार-चढ़ाव का अनुभव करते रहते हैं। कुछ दिन हमें खुशी देते हैं, तो कुछ दिन हमारे लिए दुख और तकलीफ़ लेकर आते हैं। यह भावना पिछले दो सालों में और भी अधिक हो गई है जबकि हम सबका जीवन महामारी से प्रभावित हुआ है। चाहे हम कोई भी हों या कहीं से भी हों, इस महामारी ने विश्व भर में लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। आज के अपने ऑनलाइन प्रसारण में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने जीवन की प्रकृति के बारे में बताया, तथा समझाया कि हमारे भीतर ही वो सबकुछ है जो हमें खुश और शांत रहने के लिए चाहिए, चाहे हमारा बाहरी जीवन कितनी भी कठिनाइयों और हलचलों से भरा हुआ हो।

जिस क्षण से एक आत्मा अपनी माता के गर्भ से निकलकर इस संसार में प्रवेश करती है, उस जन्म लेने की प्रक्रिया से लेकर जीवन की सभी अवस्थाओं तक, उसे अनेकों दुखों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। दुखों और कठिनाइयों का प्रकार अवश्य बदलता रहता है, लेकिन वे जीवन भर आती ज़रूर रहती हैं। जब हम इस सच्चाई को समझ जाते हैं, तो हम जवाबों की तलाश करना शुरू कर देते हैं। यह तलाश हमें आध्यात्मिक मार्ग तक और उन संतों-महापुरुषों के वचनों तक ले जाती है जो हमें खुशियाँ पाने का मार्ग दर्शाने के लिए इस संसार में आते हैं। संत हमें जीवन के रहस्य को सुलझाने का ब्लूप्रिन्ट प्रदान करते हैं ताकि हम इस जीवन के परम उद्देश्य को पूरा कर सकें – अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवा सकें। प्रभु की ओर जाने वाला मार्ग चाहे आसान नहीं है, लेकिन हम एक-एक कदम करके इस पर आगे बढ़ सकते हैं, महाराज जी ने फ़र्माया।

सबसे पहले, हमें अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक रूहानी मंडलों में एकाग्र करना होगा। अंतर में ध्यान एकाग्र करने की इस प्रक्रिया को ध्यानाभ्यास कहते हैं, और इसे हम एक पूर्ण सत्गुरु के मार्गदर्शन में सीख सकते हैं। रोज़ाना अभ्यास करने से और सच्ची लगन रखने से हम आध्यात्मिक यात्रा पर जा पाते हैं, तथा हमारी आत्मा प्रभु के प्रेम व प्रकाश के साथ जुड़ पाती है, जिससे हमारी आत्मा को पोषण और शक्ति मिलती है। दूसरी बात, संत-महापुरुष हमें एक नैतिक जीवन जीने की शिक्षा देते हैं, जिसमें हम सच्चाई, अहिंसा, करुणा, दया, और निस्वार्थता जैसे गुणों को अपने भीतर धारण करते हैं। ऐसा करने से हम देखते हैं कि धीरे-धीरे हमारा जीवन परिवर्तित हो जाता है। हम प्रभु की बनाई समस्त सृष्टि की एकता को महसूस करने लगते हैं, तथा केवल अपने लिए काम करने के बजाय हम सम्पूर्ण मानवता की भलाई के लिए कार्य करने लगते हैं। जब हम ध्यानाभ्यास और नैतिक सद्गुणों को अपने जीवन में ढाल लेंगे, तो हम देखेंगे कि एक-एक कदम करके, हमारा ध्यान प्रभु की ओर तथा आंतरिक मंडलों की खुशियों की ओर केंद्रित रहने लगेगा। हम उस अंदरूनी शक्ति को पा लेंगे जो हमें सांसारिक कठिनाइयों का सामना करने में और बाहरी हलचलों के बावजूद खुश व शांत रहने में मदद करेगी।