आंतरिक दीये को जलायें

जनवरी 15, 2022

13 जनवरी को लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है, जोकि उत्तरी भारत में मनाया जाने वाला एक मौसमी लोक-पर्व है। यह त्यौहार सर्दी की भीषणता की समाप्ति का और फसल कटने के मौसम का प्रतीक होता है, जबकि सूर्य उत्तर दिशा में अपनी यात्रा की शुरुआत करता है। आज वैश्विक श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने इस त्यौहार के आध्यात्मिक महत्त्व पर प्रकाश डाला।

लोहड़ी में जहाँ सूर्य को महत्त्व दिया जाता है, जोकि धरती को गर्मी और रोशनी देता है, वहीं यह त्यौहार हमें हमारे अंदर मौजूद तीव्र प्रकाश की भी याद दिलाता है। यह प्रकाश समस्त अंधकार को मिटा देता है और हमारे जीवन को प्रकाशित कर देता है। इस प्रकाश के साथ जुड़ने के लिए हमें एक पूर्ण सत्गुरु की मदद व मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

संत-महापुरुष हमें हमारे सच्चे आत्मिक स्वरूप की याद दिलाने के लिए आते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि जिस तरह यह भौतिक संसार है जिसे हम अपनी बाहरी इंद्रियों के द्वारा अनुभव करते हैं, वैसे ही एक विशाल आंतरिक संसार भी है – वो आध्यात्मिक संसार जो प्रेम और आनंद से भरपूर है तथा हमारी प्रतीक्षा कर रहा है। हमें ध्यानाभ्यास की तकनीक सिखाकर, सत्गुरु हमें आंतरिक मंडलों की यात्रा पर ले जाते हैं ताकि हमारी आत्मा अपने सच्चे स्वरूप का अनुभव कर सके और जीवन के उच्चतम उद्देश्य को पूरा कर सके।

जब हम अपने शरीर व मन को स्थिर करके, अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाते हैं और उसे अपने शिवनेत्र या तीसरी आँख पर एकाग्र करते हैं, तो हम प्रभु के प्रकाश के साथ जुड़ जाते हैं। यह प्रकाश हमें प्रभु के प्रेम में नहला देता है और हमारे अंदर एक महान् परिवर्तन ले आता है। यह हमें अपने साथी इंसानों की सेवा करने और उनके दुख-दर्द बाँटने के लिए प्रेरित करता है। हम शांति, आनंद और खुशियों से भरपूर हो जाते हैं। इस लोहड़ी पर हमें याद रखना चाहिए, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया, कि प्रभु का प्रकाश हमारे भीतर है, और ध्यानाभ्यास के द्वारा हम सब इस प्रकाश का अनुभव कर सकते हैं।