स्थाई खुशियों की तलाश

इस जड़ पदार्थ से बने भौतिक संसार में सबकुछ लगातार बदल रहा है – हमारे आसपास का वातावरण, हमारा शरीर, हमारे प्रियजन, हमारे संबंध, हमारी चीज़ें, और वो सबकुछ जो हमें प्यारा है। इस बदलाव से हमें खालीपन, निराशा, दुख और तकलीफ़ ही मिलता है। अपने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर हमें जीवन की अस्थिरता का एहसास होता है, और हम जान जाते हैं कि जो चीज़ खुद अस्थाई है वो हमें स्थाई खुशियाँ और परिपूर्णता दे ही नहीं सकती है जो हम ढूंढ रहे हैं। तब हम इस तलाश पर चल पड़ते हैं कि हम अपना जीवन सही तरीके से कैसे जियें।
संत-महापुरुष हमें सिखाते हैं कि हम इस जीवन में खुद को मिली अनमोल पूँजी – सीमित साँसों – से अधिकतम लाभ कैसे उठा सकते हैं। ध्यानाभ्यास की विधि के द्वारा, वे हमें सिखाते हैं कि हम बाहरी संसार से अपना ध्यान हटायें और आंतरिक मंडलों की स्थिरता की ओर ध्यान लगायें, जहाँ प्रभु निवास करते हैं। जितना अधिक समय हम ध्यानाभ्यास में लगायेंगे, उतना ही अधिक हम प्रभु के प्रेम का अनुभव करेंगे और उतना ही अधिक शांत हम होते जायेंगे। ध्यानाभ्यास के दौरान अनुभव की गई खुशी व आनंद दिन भर हमारे साथ बना रहता है, और वो हमसे होकर हमारे मिलने-जुलने वालों में भी फैलता है।