साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी

जनवरी 16, 2022

जब भी हम कोई नया विषय सीखते हैं, तो हम पहले उसके सिद्धांत को समझते हैं। फिर, विज्ञान जैसे विषयों में, हम उन सिद्धांतों को प्रयोग में लाकर देखते हैं; इससे हमें उस विषय को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलती है। आज के अपने ऑनलाइन सत्संग में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया कि अध्यात्म भी इससे अलग नहीं है।

अध्यात्म एक विज्ञान है, और वो हमारे अस्तित्व की सच्चाई से तथा प्रभु के साथ हमारे रिश्ते से संबंध रखता है। हम संतों-महापुरुषों द्वारा लिखित धर्मग्रंथ और पुस्तकें पढ़ सकते हैं, लेकिन अध्यात्म को सही मायनों में समझने के लिए हमें प्रयोग करने की आवश्यकता है। यह प्रयोग, मानव शरीर की प्रयोगशाला में किया जाता है। इसमें जिस तकनीक का उपयोग किया जाता है, महाराज जी ने फ़र्माया, वो है अंतर्मुख होना, जिसे ध्यानाभ्यास कहते हैं।

ध्यानाभ्यास में हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर अपने अंतर में एकाग्र करते हैं। जब हम अपने शरीर व मन को स्थिर कर लेते हैं, तो हम प्रभु की आंतरिक ज्योति के साथ जुड़ जाते हैं, और हमारी आत्मा आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा पर चल पड़ती है। हम स्वयं प्रभु के प्रेम का अनुभव कर लेते हैं और हमें अंधविश्वास के भरोसे रहने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। हम अपने जीवन में प्रभु की उपस्थिति को महसूस करने लगते हैं तथा पूरी तरह से बदल जाते हैं, क्योंकि हमारा जीवन प्रेम, शांति और खुशियों से भरपूर हो जाता है।