प्रभु के लिए तड़प

इस इंसानी चोले में पैदा होकर, हम अपना जीवन ऐसे जीने की पूरी कोशिश करते हैं जिससे हमें प्रेम, शांति और खुशी मिले। लेकिन क्या हम जानते हैं कि जीवन के सच्चे उद्देश्य को पूरा करने के लिए हमें किस तरह से जीना चाहिए?
आज संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने जीवन के सच्चे उद्देश्य के बारे में बात की, और प्रभु के लिए सच्ची भक्ति के गुण के बारे में समझाया, तथा प्रभु के पास वापस पहुँचने के लिए सच्ची तड़प के महत्त्व पर प्रकाश डाला। हम ज़िन्दगी भर इस संसार की भौतिक वस्तुएँ पाने की ओर ही केंद्रित रहते हैं, और हम अपना जीवन उन्हें पाने के लिए ही समर्पित कर देते हैं। लेकिन इनमें से कोई भी सांसारिक उपलब्धियाँ हमारे साथ नहीं जाती हैं जब हम यह दुनिया छोड़कर जाते हैं।
यह जीवन हमें इस संसार की दौलत इकट्ठा करने के लिए नहीं दिया गया है, बल्कि अपने अंदर छुपे अमूल्य रूहानी खज़ानों को पाने के लिए दिया गया है। ऐसा करने के लिए हमें पहले यह जानना होगा कि हम हैं कौन। जब हम यह जान जाते हैं कि हम यह शरीर या मन नहीं बल्कि आत्मा हैं, प्रभु का अंश हैं, तो हमारे अंदर अपने सच्चे स्वरूप का अनुभव करने की तड़प पैदा हो जाती है। खुद को जानने की यह प्यास तब बुझती है जब हम एक पूर्ण सत्गुरु की शरण में पहुँच जाते हैं, जो हमें खुद को आत्मा के रूप में अनुभव करने में मदद करते हैं। सत्गुरु हमें ध्यानाभ्यास की तकनीक सिखाते हैं – वो विधि जिसके द्वारा हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक रूहानी मंडलों में एकाग्र करते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम अंदरूनी यात्रा पर जा पाते हैं और प्रभु के प्रेम व प्रकाश के साथ जुड़ जाते हैं, जो हमें परमानंद, शांति और खुशियों से भरपूर कर देता है।
जितना अधिक समय हम ध्यानाभ्यास में देंगे, उतने ही अधिक प्रेम का अनुभव हम कर पायेंगे। प्रभु-प्रेम का यह सीधा अनुभव प्रभु में हमारे विश्वास को सुदृढ़ करता है, तथा प्रभु के साथ एकमेक होने की हमारी तड़प और लगन में बढ़ोतरी करता है। हमारे अंदर प्रभु को जानने की लगन दिन-रात बनी रहती है, जो हमें अपने उद्देश्य के और अधिक करीब ले जाती है। जितना अधिक हम प्रभु के नज़दीक पहुँचते जायेंगे, उतना ही ज़्यादा हम दुखों से दूर होते जायेंगे और उतना ही ज़्यादा हमारा जीवन शांतिपूर्ण होता जाएगा।