प्रार्थना और ध्यानाभ्यास

जून 6, 2020

आज के सीधे प्रसारण से जुड़े हज़ारों श्रोताओं को संबोधित करते हुए संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने प्रार्थना के विषय में समझाया, तथा प्रार्थना व प्रभु में विश्वास के आपसी संबंध पर प्रकाश डाला।

वर्तमान समय हम सबके लिए बहुत कठिन है, महाराज जी ने शुरुआत करते हुए फ़र्माया, और यह इंसान का स्वभाव है कि जब भी वो चुनौतियों या कठिनाइयों से घिरता है, तो वो प्रार्थना करता है। महाराज जी ने समझाया कि प्रार्थना इस बात को स्वीकार करना है कि कोई ऊँची ताकत है। प्रार्थना वो तरीका है जिसके ज़रिए हम प्रभु का द्वार खटखटाते हैं और वो माँगते हैं जो अपनी सीमित बुद्धि और समझ के द्वारा हमें लगता है कि हमारे लिए अच्छा है। जब हमें वो मिल जाता है जिसके लिए हम प्रार्थना करते हैं, तो हम ख़ुश हो जाते हैं, और प्रभु में हमारा विश्वास बढ़ जाता है। लेकिन जब हमारी प्रार्थना फलीभूत नहीं होती है, तो हमारा विश्वास टूट जाता है और हम निराश हो जाते हैं।

अक्सर थोड़ा समय गुज़र जाने के बाद हमें महसूस होता है कि जो हुआ अच्छा ही हुआ और प्रभु ने जो किया वो ठीक ही किया, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। जब प्रभु में हमारा विश्वास पूर्ण होता है, तो हम ‘तेरा भाणा मीठा लागे’ के सिद्धांत के अनुसार जीने लगते हैं, और अपने जीवन में होने वाली हर चीज़ का शुक्राना करने लगते हैं। तब हम उस चीज़ के लिए प्रार्थना करने के बजाय जो हमें लगता है कि हमारे लिए अच्छी है, ये प्रार्थना करने लगते हैं कि हमारे जीवन में वो हो जो प्रभु चाहते हैं। हम प्रार्थना करने के बजाय ध्यान की अवस्था में पहुँच जाते हैं, जोकि प्रार्थना का उच्चतम स्वरूप है।

इस हर क्षण बदलने वाले संसार में, हमें अपने विश्वास को दृढ़ करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम प्रभु के प्रेम में शरण ले सकें। प्रभु हमारे साथ हैं और हमारे अंदर हैं, महाराज जी ने याद दिलाया। हमारे आसपास चाहे कितनी भी मुसीबतें और दिक्कतें हों, यह समय भी एक दिन गुज़र जाएगा। हमें अपना ध्यान प्रभु पर केंद्रित रखना चाहिए, और यह जानना चाहिए कि प्रभु हर समय हमारी रक्षा कर रहे हैं और हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं, ताकि हम अपना जीवन बिना किसी डर के गुज़ार सकें, महाराज जी ने अंत में फ़र्माया।