पूर्ण सत्गुरु का महत्त्व

जून 13, 2020

अपने शनिवार के सत्संग में, जिसका सारे विश्व में सीधा प्रसारण किया गया, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने उस उद्देश्य के बारे में बताया जिसके लिए हमें यह मानव चोला दिया गया है।

अध्यात्म, महाराज जी ने फ़र्माया, हमें सिखाता है कि हमें यह जन्म एक महान् उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिला हैः अपने आप को आत्मा के रूप में जानना और अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवाना। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए पहला कदम है यह समझना कि हम असल में कौन हैं। जब तक हम ऐसा नहीं करते, तब तक हम अपनी मंज़िल की ओर कदम नहीं बढ़ा सकते।

ज़िंदगी भर, महाराज जी ने समझाया, हम दूसरों पर निर्भर रहते हैं कि वे हमें जीवन के तौर-तरीके समझायें। आध्यात्मिक क्षेत्र में भी ऐसा ही है। प्रभु का अनुभव करने के लिए और अपनी मंज़िल की ओर कदम बढ़ाने के लिए यह ज़रूरी है कि हम एक ऐसे पूर्ण सत्गुरु की शरण में पहुँचें जिन्होंने ख़ुद इस जीवन के रहस्य को हल किया है, तथा जो हमें भी आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाने और हमारी मंज़िल तक पहुँचाने में सक्षम हैं। सत्गुरु के मार्गदर्शन में हम ध्यानाभ्यास की कला सीख लेते हैं, ताकि हम आंतरिक मंडलों में जा सकें और स्वयं प्रभु के प्रेम का अनुभव कर सकें।

यह दिव्य प्रेम हमारे दिल की गहराइयों में उतर जाता है, और सारी तकलीफ़ें और दुख-दर्द मिट जाते हैं। प्रभु-प्रेम के अनंत महासागर के संपर्क में आने पर हम असीम ख़ुशियों और परमानंद से भरपूर हो जाते हैं। प्रभु का अनुभव करने से प्रभु में हमारा विश्वास दृढ़ हो जाता है, और हम आत्मा के स्तर पर जाग उठते हैं। अंतर में प्रभु की ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ने पर हम जान जाते हैं कि वही शक्ति दूसरों के अंदर भी मौजूद है। धीरे-धीरे, हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है और हम प्रभु की बनाई संपूर्ण सृष्टि की एकता को महसूस करने लगते हैं।