ध्यानाभ्यास के द्वारा अपनी एकता का अनुभव

जून 7, 2020

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने आज नौवें “ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस” (विश्व में अपने-अपने स्थान पर ध्यानाभ्यास करें) ऑनलाइन कार्यक्रम की अध्यक्षता की। विशाल ऑनलाइन श्रोतासमूह को ध्यान में बैठाने से पूर्व महाराज जी ने सत्संग फ़र्माया, पहले हिंदी में और फिर अंग्रेज़ी में, जिसमें उन्होंने प्रभु की बनाई सम्पूर्ण सृष्टि के साथ हमारे संबंध के बारे में समझाया, और बताया कि ध्यानाभ्यास किस तरह हमें अपनी आपसी एकता का अनुभव करने में मदद करता है।

अपनी भौतिक इंद्रियों के स्तर पर जीते हुए, हम द्वैत की दुनिया में जीते रहते हैं और ख़ुद को दूसरों से अलग ही समझते रहते हैं। ऐसी सोच रखने से हमारे बीच दीवारें खड़ी हो जाती हैं और हम ऐसा जीवन जीते हैं जो प्यार से भरपूर नहीं होता है और जो हमारे वातावरण में हलचल और तनाव ले आता है। संत-महापुरुष इस दुनिया में इसीलिए आते हैं ताकि हमें याद दिला सकें कि हम यहाँ प्रभु की बनाई संपूर्ण सृष्टि के साथ प्यार से मिल-जुलकर रहने के लिए आए हैं, महाराज जी ने समझाया। जब हम प्रेम से जीते हैं, जब हम एक-दूसरे को गले से लगा लेते हैं, जब हम दूसरों की ओर सहायता का हाथ बढ़ाते हैं, तब हम जीवन को उस तरीके से जीते हैं जैसे प्रभु चाहते हैं कि हम जियें।

ऐसा जीवन जीने के लिए, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया, हमें सबके साथ अपनी आंतरिक एकता को पहचानना होगा और सभी को अपना ही मानकर गले से लगाना होगा। जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा इस भौतिक संसार से ऊपर उठते हैं और आंतरिक रूहानी मंडलों में यात्रा करते हैं, तब हम सच्चाई को जान जाते हैं। अंतर में प्रभु की दिव्य ज्योति और श्रुति का अनुभव करने से हम इस सच्चाई को जान जाते हैं कि प्रभु की यही ज्योति दूसरों के अंदर भी मौजूद है। हम स्वयं प्रभु के प्रेम का अनुभव कर लेते हैं और हमारे अंदर एक परिवर्तन आ जाता है। तब हम दूसरों को अपना ही मानकर गले से लगा लेते हैं। हम प्रेम और करुणा से भरपूर जीवन बिताने लगते हैं, दूसरों की सेवा-सहायता करने लगते हैं। हम प्रभु की बनाई संपूर्ण सृष्टि के साथ एकता में जीने लगते हैं, तथा अपने आसपास ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ फैलाने लगते हैं।