ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेसः स्थाई ख़ुशियों की तलाश

इस शाम, इस शाम, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने छठे “ग्लोबल मेडिटेशन इन प्लेस” (विश्व में अपने-अपने स्थान पर ध्यानाभ्यास करें) की अध्यक्षता की। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में विश्व के कोने-कोने से कई हज़ार लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ की।
इस 30 मिनट के ध्यानाभ्यास सत्र से पहले संत राजिन्दर सिंह जी ने दिल्ली से सत्संग फ़र्माया, जिसमें उन्होंने मानवता की स्थाई ख़ुशियाँ और शांति हासिल करने की तलाश के बारे में बताया। इस भौतिक दुनिया में जीते हुए और ख़ुद को शरीर ही समझते हुए, हम भौतिक वस्तुओं और सांसारिक उपलब्धियों में ही ख़ुशियाँ तलाशते रहते हैं, लेकिन हमें यही अनुभव होता है कि इस संसार की किसी भी चीज़ से मिलने वाली ख़ुशी थोड़े समय की ही होती है। दुनियावी चीज़ों को पाने की हमारी इच्छाएँ हमें कई दिशाओं में खींचती रहती हैं। लेकिन हमें अपनी इच्छित वस्तु मिले चाहे न मिले, हमें स्थाई ख़ुशियाँ कभी भी नहीं मिल पाती हैं।
स्थाई ख़ुशियाँ पाने की कुंजी है, महाराज जी ने समझाया, यह जानना कि स्थाई ख़ुशियाँ कभी भी अस्थाई चीज़ों से नहीं आ सकतीं। सदा-सदा रहने वाली चीज़ का अनुभव करने के लिए हमें इस भौतिक संसार से ऊपर उठना होगा, और ऐसा करने के लिए हमें ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने अंतर में जाना होगा। आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा पर जाने से हम प्रभु के प्रेम का अनुभव कर पाते हैं, और वो प्रेम हमें शांति और आनंद से भरपूर कर देता है। धीरे-धीरे हम जान जाते हैं कि हम शरीर या मन नहीं हैं, बल्कि आत्मा हैं, जोकि प्रेम और आनंद के महासागर – प्रभु – की एक बूंद है। हमें अपने मानव जन्म की और इस धरती पर अपने उद्देश्य की बेहतर समझ आ जाती है।
ध्यानाभ्यास के द्वारा हम जान जाते हैं कि जिस तरह बारिश वाले दिन में बादल सूर्य को ढक देते हैं, उसी तरह मन, माया, और भ्रम की पर्तें हमारी आत्मा को ढके रहती हैं, तथा हमें प्रभु-प्रेम की उन किरणों का अनुभव नहीं करने देती हैं जो हर समय हमारे ऊपर पड़ रही हैं। जब हम स्वयं प्रभु के प्रेम का अनुभव कर लेते हैं, तो हमारा विश्वास दृढ़ हो जाता है कि प्रभु हर क्षण हमारे साथ हैं। इस अनुभव के साथ ही हम सदा-सदा रहने वाली शांति और ख़ुशी का अनुभव करने लगते हैं।