प्रेम सारे घाव भर देता है

जीवन हमेशा हमारी मर्ज़ी के अनुसार नहीं चलता है। जब भी कभी हमें लगता है कि हमारे साथ कुछ गलत किया गया है, या हमारा फ़ायदा उठाया गया है, तो हम दुखी और क्रोधित महसूस करते हैं, या कभी-कभी बदला भी लेना चाहते हैं। इन भावनाओं में बहकर हम अपनी स्थिति और भी अधिक खराब कर लेते हैं, तथा और भी ज़्यादा दुख-दर्द व हलचल की अवस्था में चले जाते हैं।
आज के अपने सत्संग में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने उन दो तरीकों के बारे में बताया जिनसे हम इन स्थितियों का सामना कर सकते हैं: एक तरीका तो यह है कि हम गुस्से को अपने ऊपर हावी होने दें और बदला लें। दूसरा तरीका, जोकि संतों-महापुरुषों का तरीका है, दया व क्षमा का मार्ग है। जब हम अपने दुख और पीड़ा का बदला लेते हैं, तो हम दूसरों को और खुद को तकलीफ़ पहुँचाते हैं। बदले और क्रोध से कभी कोई हल नहीं निकलता है। दूसरी तरफ़, जब हम अपने दिल से लोगों को क्षमा कर देते हैं और दया दर्शाते हैं, तो हम दया व करुणा से पेश आते हैं, जिससे हलचल खत्म हो जाती है।
हम केवल अपने खुद के कार्यों को नियंत्रित कर सकते हैं, महाराज जी ने फ़र्माया। जब दूसरे हमें दुख या तकलीफ़ पहुँचाते हैं, तो उनके कार्यों को नियंत्रित करने की कोशिश करना बेकार है। इसके बजाय, हमें खुद को शांत रखने की कोशिश करनी चाहिए, और स्थिति को शांतिपूर्वक सुलझाने का पूरा-पूरा प्रयास करना चाहिए। जो लोग हमें तकलीफ़ पहुँचाते हैं, उन्हें माफ़ करने के लिए हमें उस दर्द की ओर से ध्यान हटाना सीखना चाहिए, और एक ऐेसी अवस्था में पहुँचने की कोशिश करनी चाहिए जहाँ हमारे अंदर दर्द या बदले की भावना नहीं, बल्कि केवल प्रेम की भावना हो।
हम इस अवस्था तक कैसे पहुँच सकते हैं? संत-महापुरुष बताते हैं कि ऐसा तब होता है जब हम प्रभु की नज़दीकी का अनुभव करते हैं। प्रभु, यानी सृष्टिकर्ता, प्रेम के महासागर हैं, और जब हम प्रभु की ओर ध्यान टिकाते हैं, तो हम इस दिव्य प्रेम में नहा जाते हैं। हम प्रभु की ओर ध्यानाभ्यास के द्वारा एकाग्र हो सकते हैं, जब हम भौतिक संसार के दुखों-तकलीफ़ों से ध्यान हटाकर, उसे आंतरिक रूहानी मंडलों के प्रवेशद्वार, यानी अपनी अंदरूनी आँख, पर टिकाते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम प्रभु के प्रेम से भरपूर हो जाते हैं और सम्पूर्ण सृष्टि की एकता को स्वयं देखने लगते हैं। प्रभु के एक ही परिवार के सदस्य होने के नाते हम सभी जीवों के साथ अपनी अंदरूनी एकता का अनुभव करने लगते हैं। तब हमारे अंदर आसानी से दूसरों के लिए दया का भाव जाग उठता है, क्योंकि हम सबको अपना ही मानने लगते हैं। हम समझ जाते हैं कि जब हम अपनी ही मर्ज़ी चलाना चाहते हैं, तो हम दूसरों के लिए तकलीफ़ें और परेशानियाँ ही पैदा करते हैं। प्रभु हमारे भीतर ही हैं, और इस दुनिया के दुख-दर्द से छुटकारा पाने का एक ही तरीका है – प्रभु के असीम प्रेम का अनुभव करना, क्योंकि प्रेम सारे घावों को भर देता है।