प्रभु को पाने का पहला कदम

पुरातन काल से ही जब-जब मानवता को इस संसार में मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, तब-तब उन्होंने प्रभु की तलाश की है। हमने पहाड़ों की ऊँचाइयों में और समुद्र की गहराइयों में खोज की है। हमने प्रकृति की सुंदरता में और पवित्र धर्मग्रंथों में प्रभु की तलाश की है, लेकिन हम इसी नतीजे पर पहुँचे हैं कि प्रभु को इस भौतिक संसार में पाया नहीं जा सकता है। तो फिर हम प्रभु को कैसे पा सकते हैं?
सभी युगों में आए संतों-महापुरुषों ने हमें यही बताया है कि प्रभु के पास पहुँचने का मार्ग, स्थिरता का मार्ग है। जब हम अपने अंदर स्थिरता का अनुभव कर लेते हैं, तभी हम प्रभु की भव्यता का अनुभव कर सकते हैं। महापुरुष हमें समझाते हैं कि प्रभु को पाने का पहला कदम है अपने सच्चे स्वरूप को जानना। इस वक़्त हम खुद को शरीर ही समझ रहे हैं, जोकि जड़ पदार्थ से बना है। लेकिन प्रभु चेतन हैं, और प्रभु का अनुभव करने के लिए हमें भी चेतन होना होगा। ऐसा तब होगा जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप के प्रति जागृत हो जायेंगे।
ध्यानाभ्यास में हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक रूहानी मंडलों में एकाग्र करते हैं। ध्यानाभ्यास की स्थिरता में, हम आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा पर जा पाते हैं, और इस सत्य का अनुभव कर लेते हैं कि हम आत्मा हैं और परमात्मा का अंश हैं, जो कई युगों पूर्व उनसे अलग हो गए थे। हम अपनी आत्मा का अनुभव कर लेते हैं, और हमारे अंदर प्रभु के धाम वापस जाने की तीव्र तड़प जाग उठती है, जहाँ से हम उत्पन्न हुए थे। इस प्रकार, ध्यानाभ्यास की स्थिरता में ही हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जान सकते हैं, और यह आत्म-अनुभव ही प्रभु-अनुभव का ज़रिया बनता है।