अंतर में खुशियाँ पायें

फ़रवरी 26, 2022

खुशियाँ – ये वो अवस्था है जिसे हम सब ढूंढ रहे हैं। हम इसे प्रकृति की सुंदरता में, रिश्तों की मिठास में, और दुनियावी दौलत व संपत्तियों में ढूंढते रहते हैं। लेकिन जीवन के किसी न किसी मोड़ पर हमें एहसास होता है कि इस भौतिक संसार में मिलने वाली सभी खुशियाँ अस्थाई और क्षणभंगुर हैं। आज के अपने सत्संग में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने स्थाई खुशियाँ पाने के तरीके के बारे में बताया।

संत-महापुरुष इस संसार में आते हैं ताकि सच्ची खुशियाँ पाने में हमारी मदद कर सकें। वे हमें उस उच्चतम उद्देश्य की याद दिलाते हैं जिसके लिए हमें यह मानव चोला दिया गया है। हमारी आत्मा, जोकि हमारा सच्चा स्वरूप है, प्रभु का अंश है। ये प्रभु रूपी महासागर की एक बूँद है, और इसे प्रभु से बिछुड़े लाखों-करोड़ों साल हो चुके हैं। ये मानव चोला हमें इसीलिए दिया गया है ताकि हम, जो अपने सच्चे स्वरूप को भूल चुके हैं, अपने आप को आत्मा के रूप में अनुभव कर सकें और अपने सच्चे घर वापस जा सकें। प्रभु के प्रेम का अनुभव करने से ही हम स्थाई खुशियाँ हासिल कर सकते हैं। इसके लिए हमें ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक रूहानी यात्रा पर जाना होगा।

जब हम अपने ध्यान को बाहरी संसार से हटाकर आंतरिक मंडलों में एकाग्र करते हैं, तो हम प्रभु की ज्योति व श्रुति के साथ जुड़ जाते हैं। हम प्रभु के प्रेम से भरपूर हो जाते हैं  और हमारा जीवन खुशियों से भर जाता है। प्रभु की उपस्थिति का अनुभव करने से हम शांति से भरपूर हो जाते हैं और अपना जीवन प्रेम के साथ बिताने लगते हैं। आंतरिक मंडलों की असीम सुंदरता हमें मोहित कर लेती है, और फिर हम बाहरी संसार की क्षणिक खुशियों के पीछे भागना बंद कर देते हैं। प्रभु का प्रेम हमें द्वैत के संसार से एकता के संसार में ले जाता है, जहाँ हम हरेक को अपना ही मानकर गले से लगा लेते हैं। जब हम आध्यात्मिक यात्रा पर तरक्की करते जाते हैं, तो प्रभु का प्रेम हमारे जीवन का आधार बन जाता है, धीरे-धीरे हमें बदल देता है, और हम प्रभु के अधिक नज़दीक पहुँचते जाते हैं। इस सबकी शुरुआत तब होती है जब हम ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक मंडलों की सुंदरता, आनंद व प्रेम का अनुभव करने लगते हैं।